________________
२४६
परमार अभिलेख
१२. उसका
७. उसके (पश्चात्) उदयादित्य हुआ जो सदा उत्साह में कुतुहलपूर्ण, असाधारण वीर व
श्रीयुक्त था और जो विरोधियों की अलक्ष्मी का कारण था। ८. कल्पान्त के तुल्य महायुद्धों के होने पर जिसके तीखे बाणों द्वारा कितने अत्यन्त उच्च
नरेश शक्तिशाली सेनाओं सहित उन्मूलित नहीं किये गये ? (महाप्रलय काल में वायु
द्वारा कितने महापर्वत नहीं उखाड़े गये) ९. उससे नरवर्मन् नरेश हुआ जिसने अपने शत्रुओं के मर्मस्थल छिन्न कर दिये। बुद्धिमान
जो धर्म के उद्धार करने में व राजाओं के लिए सीमा स्वरूप था। १०. प्रतिदिन प्रातःकाल स्वयं ब्राह्मणों के लिए ग्रामपद देने से उसने एक पांव वाले धर्म को
अनेक पांव प्रदान कर दिये। ११. उसका पुत्र यशोवर्मन् हुआ जो क्षत्रियों में मुकुट रूप था। उसका पुत्र अजयवर्मन् था
जो विजय व लक्ष्मी के लिए विख्यात था। उसका पुत्र विध्यवर्मन् था जिसकी उत्पत्ति द्वारा (वंश) धन्य हुआ, जो वीर शिरोमणि
था और गुर्जर (नरेश) को हराने में इस महाभज ने (शक्ति) लगाई। १३. रणकुशल जिसका खङ्ग मानो तीनों लोकों की रक्षा करने के लिए ही धारा नगरी के
उद्धार करने के साथ ही विधारता को धारण कर रहा है। १४. उसीके गुणधर्म वाला, इन्द्र के समान शोभायुक्त पुत्र सुभटवर्मन् भूतल पर धर्म में
आरूढ़ हुआ। १५. सूर्य की कांति वाले दिग्विजयी जिसका प्रताप जलते हुए गुर्जरनगर में दावानल के
बहाने से आज भी गर्जना कर रहा है। (उसके) स्वर्गलोक को जाने पर उसका पुत्र अर्जुन नरेश आज भी पृथ्वी मंडल को अपने
बाहु पर कंकण के समान धारण कर रहा है। १७. बाललीला के समान युद्ध में जयसिंह के पलायन करने पर जिसका यश दिक्पालों के
हास्य के बहाने से दिशाओं में फैल रहा है। १८. साहित्य एवं गायन विद्या के सर्वस्व निधि जिसने मानो सरस्वती देवी का पुस्तक व
वीणा का भार ही उतार लिया हो। १९. तीन प्रकार के वीर जिसने अपनी कीर्ति तीन प्रकार से विकसित की, जगत को तीन
प्रकार से पवित्र करने में उसके अतिरिक्त अन्य कौन ? __वह ही नरनायक सब प्रकार से उदयशील हो कर पगारा प्रतिजागरणक में नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित हथिणावर ग्राम में, पूर्व नरेशों द्वारा दी गई भूमि में से शेष, समस्त राजपुरुषों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों, आसपास के निवासियों, पटेलों व ग्रामीणों को निर्देश देते हैं-आप को विदित हो कि श्रीयुक्त अमरेश्वर तीर्थ में ठहरे हुए हमारे द्वारा बारह सौ बहत्तर संवत्सर की भाद्रपद पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण पर्व पर रेवा व कपिला के संगम पर स्नान कर, भगवान भवानीपति व ओंकार लक्ष्मीपति चक्रस्वामी (विष्णु) की अर्चना कर, संसार की असारता देख कर, तथा-- २०. इस पृथ्वी का आधिपत्य वायु में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषयभोग
प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाला है, मानवप्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले जलबिन्दु के समान है, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है ।
इस सब पर विचार कर, अदृष्टफल को अंगीकार कर, मुक्तावस्थु स्थान से आये वाजसनेय शाखा के अध्यायी, काश्यपगोत्री, काश्यप क्त्सार नैध्रुव इन तीन प्रवरों वाले, आवसथिक देल्ह के प्रपौत्र,
१६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org