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नागपुर प्रशस्ति
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यः संभूय तिमिङ्गिलप्रभृतिभिः संसप्पिणस्तन्वि]ते पोताधानसव (ब) न्धुतां शिखरिणो मैनाकमुख्या अपि । भ्राम्यन्मन्दरडम्व (म्ब) राणि दघिरे तैरप्यशेषेम्वु (म्बु)धौ यत्सेनागजराज[पीव]रकरा--- नोच्छृङ्खलै ।।[५१।।] अथातितिक्षोरिव राज
राज मन्यं तदाशां प्रति यस्य यातुः । द्विधापि भीत्युज्झितवित्तपार्शभूपैः प्रतीपैविभयर्व (ब) भूवे ।।[५२।।) आरामा: समरा मरावपि तदा पुन्नागपूगादिमद्गुल्मान्तवनदेवतायितजय श्रीमद्यश: पादपाः । यस्यासन्भुजदण्डचण्डि]मलसल्लोलासिलक्षीकृतक्षोणी पालक
पालमण्डलगलत्कीलालकुल्याकुला : ॥[५३॥] खेलोत्खाततुरुष्कदत्त विलसद्वाहावलोवेल्लनक्लाम्यत्कुङकुमकेसराधिकमृदौ वंशूपंकण्ठस्थले । येनावास्य सरस्वतीसविधतासाधिक्यवाक्पाटवश्चाटूनुत्कट[प]त्रिपञ्जरगत : कीराधिपोध्याप्यत ।।[५४॥] तेन व्यापुरमण्डले सुकृति
ना यस्म ग्रहेन्द्रग्रहे यद्ग्रामद्वयमग्रियेण विधिना विश्राणितं श्रद्धया। तभ्राता नरवर्मदेवनृपतिः पश्चात्परीवर्त्य तद्ग्रामं मोखलपाटकाख्यमदिशद्देशत्रयस्येच्छया ॥[५५।।] तेन स्वयंकृतानेकप्रशस्तिस्तुतिचित्रितं । श्रीमल्लक्ष्मीधरेणतद्देवागारमकार्यत ।। [५६।।]
सं ११६१
४१.
ओं
हंहो वु(बु)धाः साधु समुत्सहध्वं कुशाग्रकल्पां च धियं विधध्वं। मध्यस्थभावं च समाश्रयध्वं सुखं च नः सूक्तिसुधामुपाध्वं ।। [५७॥] वन्दनीयावुभौ सूक्तिश्रोतरौ तौ विपश्चितौ। यावश्रु मुञ्चतः सान्द्रमानन्दालस्यनिर्भ (ब्र्भ)रौ॥[५८॥]
(अनुवाद) १. ओं! ओं सरस्वती को नमस्कार। १. हे सरस्वती एवं दुर्गा देवियो! प्रसाद, उदारता, मधुरता, चित्त एकाग्रता, समता आदि
आप दोनों के जो गुण हैं वे हमको भी प्राप्त हों। २. तीनों भुवनों पर वर्तमान एकमात्र विष्णु आपके कल्याण के हेतु हो, जिसके मध्यमपद ____ आकाश पर आश्रित होने पर सूर्य इत्यादि प्रकाशित होते हैं। ३. जाति, वृत्त (छन्द आदि) को धारण करने वाली, गुण व अलंकारों से मनोहर, रसों से
परिपूर्ण, सूक्तियों तथा जाति (कुल) वृत्त (आचरण) से सम्पन्न, गुणरूपी अलंकारों से यक्त, मधुर व्यवहार वाले विद्वज्जन हम पर प्रसन्न हों।
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