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मधुकरगढ़ अभिलेख
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५७.
हे श्रेष्ठ विद्वज्जनों, आप उत्तम रीति से उत्साह रखिये व अपनी अपनी बुद्धि को कुशाग्र के तुल्य बनाइये, मध्यस्थभाव (निष्पक्षता ) स्वीकार कीजिये और हमारी इस सूक्ति रूपी अमृत का सुखपूर्वक आस्वादन कीजिये ।
सूक्तिकार व श्रोता, ऐसे दोनों विद्वान वन्दनीय हैं जो सूक्ति को सुनकर आनन्द विभोर होकर आनन्द के आश्रु बहाते हैं ।
५८.
( ३७ )
मधुकरगढ़ का नरवर्मदेव कालीन प्रस्तर खण्ड अभिलेख ( संवत् ११६४ = ११०७ ई.)
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प्रस्तुत अभिलेख एक सफेद प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है । यह १८२५ ई. में राजस्थान में भूतपूर्व बूंदी राज्य में हरौती के अन्तर्गत मधुकरगढ़ में प्राप्त हुआ था । यह कर्नल टाड़ ने खोजा था । इसका उल्लेख ट्रा. रा. ए. सो. ग्रे. ब्रि. आ. १८२७, भाग १, पृष्ठ २२३-२२६ पर किया गया । उसके बाद भी समय २ पर इसका उल्लेख किया गया । वर्तमान में प्रस्तरखण्ड अज्ञात है । उपरोक्त जर्नल में अभिलेख का अंग्रेजी में केवल सारांश दिया हुआ है । अभिलेख का मूल पाठ नहीं है। न ही उसकी प्रतिलिपि अथवा फोटो है ।
तिथि अन्त में संवत् ११६४ पौष पूर्णिमा दी हुई है । संभवतः उस दिन सूर्यग्रहण पड़ा था। यह मंगलवार ३१ दिसम्बर ११०७ ईस्वी के बराबर है । परन्तु उस दिन कोई सूर्यग्रहण नहीं अपितु चन्द्रग्रहण पड़ा था । सूर्यग्रहण उससे एक पखवाड़ा पहले अमावस्था को अर्थात् १६ दिसम्बर ११०७ ईस्वी को पड़ा था ।
प्रमुख ध्येय नरवर्मदेव के अधीन सामन्त श्रीहर द्वारा एक शिवमंदिर के निर्माण का उल्लेख करना है । अभिलेख के विवरण पर विचार करने पर अनुमान होता है कि इसमें प्रारम्भ में ४ श्लोक रहे होंगे । प्रथम श्लोक में भगवान नीलकण्ठ के ध्यान में रहने की कामना है । दूसरे में नरेश सिंधुराज की विजयों का सामान्य विवरण है । अगले श्लोक में भोज, उदयादित्य एवं नरवर्मन के उल्लेख हैं । इसके उपरान्त मंत्री रूद्रयादित्य का उल्लेख है । आगे का विवरण संभवतः गद्यात्मक है । इसमें दानकर्ता सामन्त श्रीहर के पिता महादेव एवं पितामह रूद्रादित्य के उल्लेख हैं। यहां कहा गया है। कि श्रीहर ने अपने अधिपति की ख्याति में वृद्धि की । संभवतः उसने नरेश नरवर्मन के लिये कोई विजय प्राप्त की होगी । परन्तु उसका वर्णन नहीं है ।
श्रीहर ने अपने अधिपति के मंदिर के पास ही एक शिव मंदिर बनवाया । यह उसने अपने कोष से सवा लाख दर्भ ( मुद्रायें) व्यय करके बनवाया था। इसको शुद्ध-धन कहा है। मंदिर वंज . स्थान पर बनवाया गया था जो दक्खिन व उदीच्य देशों के मध्य स्थित था। यहां दक्खिनदेश से तात्पर्य विध्य पर्वत के दक्षिण की ओर स्थित प्रदेश से है । उदीच्य देश से तात्पर्य उत्तरी भारत से है । इन दोनों भौगोलिक भागों के मध्य मालव भूमि स्थित है । वंज स्थान मधुकरगढ़ का ही अन्य नाम रहा होगा, अथवा मधुकरगढ़ के पास ही कोई स्थान रहा होगा। कोटा से प्रायः १२ मील की दूरी पर पहाड़ियों में मन्दरगढ़ आज भी विद्यमान है । यही मधुकरगढ़ था ( कोटा राज्य का इतिहास, पृष्ठ १३९ ) ।
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