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परमार अभिलेख
मद्वंशजाः परमहीपतिवंशजा वा पापानिवृत्तमनसो भुवि भाविभूपाः ।
ये पालयन्ति मम् धर्ममहीं तु तेषां पादारविन्दयुगलं शिरसा नमामि ।।१३।। इत्यायवचनक्रममवलंव्य ।
इति कमलदलांबुबिन्दुलोलां श्रियमनुचिन्त्य मनुष्यजीवितं च । सकलमिदमुदाहृतं च बुध्वा न हि पुरुषः परकीर्तयो विलोप्याः ।।१४।।
इति । स्वहस्तोयं महाकुमार-श्री-लक्ष्मीवर्मदेवसुत-महाकुमार-श्री-हरिश्चन्द्रदेव-परमार-कुलकमलबन्धोः । श्रीरस्तु । हस्ताक्षर रामचन्द्रका । . ... ... .. (अनुवाद)
श्री। श्री गणेश को नमस्कार । स्वस्ति । विजय व वृद्धि हो । : १. जो संसार के बीज के समान चन्द्र की कला को संसार की उत्पत्ति हेतु मस्तक पर धारण
करते हैं, मेघ ही जिनके केशं हैं ऐसे महादेव सर्वश्रेष्ठ हैं। २. प्रलय काल में चमकनेवाली विद्युत् की आभा जैसी पीली, काम के शत्रु, शिव की जटायें
तुम्हारा कल्याण करें।
परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री उदयादित्य के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री नरवर्मदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री यशोवर्मदेव के पादानुध्यायी परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्री जयवर्मदेव, इन सभी में से अंतिम नरेश के प्रसाद से प्राप्त किया है अपना आधिपत्य जिसने, समस्त ख्याति से युक्त, प्राप्त किए हुए पांच महाशब्दों के अलंकारों से शोभायमान महाकुमार श्री हरिश्चन्द्रदेव नीलगिरि मण्डल में अमडापद्र प्रतिजागरणक से संबद्ध पलसवाडा ग्राम और सम्मतिग्राम के निवासियों, समस्त राजपुरुषों, विषयिकों, पटेलों, ग्रामीणों, श्रेष्ठ ब्राह्मणों आदि को आज्ञा देते हैं--आपको विदित हो कि हमारे द्वारा श्री विक्रम काल के व्यतीत १२३५ बारह सौ पैंतीसवें वर्ष में पौष वदि अमावस्या को हुए सूर्यपर्व पर चतुर्मुख मार्कण्डेश्वर देव के समीप अत्यन्त निर्मल व पवित्र नर्मदा तीर्थ के जल द्वारा स्नान कर, दो श्वेतवस्त्रों को धारण कर, चर व अचर के स्वामी भगवान भवानीपति की अर्चना कर, समिधा कूश तिल अन्न घी का अग्नि में हवन कर, कपिला गाय की तीन प्रदक्षिणा कर, आचमन कर, एक सहस्र गायों का महादान देकर और संसार की असारता देख कर, यौवन एवं धन को कमलदल पर पड़ी जलबिन्दु के समान चंचल मान कर, और कहा गया है- . .. . ३. इस पथ्वी का आधिपत्य वाय में बिखरने वाले बादलों के समान चंचल है, विषय
भोग प्रारम्भ मात्र में ही मधुर लगने वाला है, मानवप्राण तिनके के अग्रभाग पर रहने वाले जलबिन्दु के समान हैं, परलोक जाने में केवल धर्म ही सखा होता है।
ऐसा विचार कर मातापिता व स्वयं के पुण्य व यश की अभिवृद्धि के लिए कात्यायन गोत्री त्रिप्रवरी पंडित सिंह के पुत्र पंडित दशरथ शर्मा के लिए ऊपर लिखे परसवाडा ग्राम के दो अंश, अंकों में अंश २ तथा १२३६ बारह सौ छत्तीस संवत्सर के अन्तर्गत वैसाख मास में पूर्णिमा को पराशर गोत्री त्रिप्रवरी पंडित देलू के पुत्र पंडित मालूण शर्मा ब्राह्मण के लिए एक अंश, अंकों में अंश १ गुणपुर दुर्ग के तल में बनी दुकानों से युक्त ये दोनों अंश, इस प्रकार तीन अंश करके नीलगिरि मंडल द्वारा दिये गये कुडव के नाप से चालीस मानी तेल, साथ में ऊपर लिखा सवाडा ग्राम जिसकी चारों सीमाएं निर्धारित हैं, वृक्षमाला से व्याप्त, निधि निक्षेप सहित वापी कूप तड़ाग से युक्त सभी जो इसके अन्दर प्राप्त है, शासन द्वारा जल हाथ में लेकर
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