Book Title: Parmaras Abhilekh
Author(s): Amarchand Mittal, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 281
________________ परमार अभिलेख विद्वान उस क्षेत्र को त्याग कर मालवा में आ बसे। इनमें एक जैन विद्वान आशाधर भी था, जिसने अनेक ग्रन्थों की रचना की। इनके आधार पर तत्कालीन अनेक घटनाओं के तिथिवार ब्योरे प्राप्त होते हैं। आशाधर ने पांच परमार नरेशों का राज्यकाल देखा था जिनमें विध्यवर्मन (११७५-११९४ ई.), सुभटवर्मन् (११९४-१२०९ ई.) अर्जुनवर्मन् प्रथम (१२०९-१२१७ ई.), देवपालदेव (१२१८-१२३९) तथा जयतुगिदेव (१२३९-१२५५ ई.) थे। नाथुराम प्रेमी रचित 'विद्वत्-रत्नमाला" में आशाधर द्वारा रचित किसी एक ग्रन्थ से निम्न श्लोक उद्धृत किया गया है-- . . इत्युपश्लोकितो विद्वद्विल्हेणन कवीशिना। - श्री विन्ध्य भूपति महासांधिविग्रहिकेन यः ।। . (इस प्रकार से कवियों में श्रेष्ठ, विंध्य नरेश के महासांधिविग्रहिक, विद्वान विल्हण द्वारा यह प्रस्तुत किया गया)। इस उद्धरण से प्रस्तुत अभिलेख के कथन की पुष्टि होती है। इस काल में विल्हण की गणना राज्य के श्रेष्ठ कवियों में होती थी। उसने अपने समय के राज्याधिकारी नरेशों से भी यथायोग्य सम्मान प्राप्त किया था। (मूल पाठ) १. पुंसाकारमैक्यंगतंक. . . . पतनमाम्यर्कबिम्ब ।। . . . . २. सूक्तिः प्रथयति न चतुर्वर्गमर्कप्रसादात् लक्ष्मी वक्षसि . . . . तामनव समानयेति विमुखीनाभि स्वयंभू-स्पृशा येनैकहृदा३. यं ममेति विहिता पुष्टा स मां रक्षतु ।। उत्फुल्लांबुज . . . . ननु वेत्सि किं न विदितं मालेति तेजल्पतस्तद्दामेति सहासयाकम४. लयाश्लिष्टो हरिः पातु वः ।। धर्मध्वंसकराम . . . . मत्स्येंद्र तलादशेष जलधिव्यापिव्युदस्ताम्भसि। जायते व्रज नाम वारिधिपदव्योमैन्दुतां भास्करः शब्दज्योतिरगाच्चतुर्मुखमदः पा५. यादपायात्स मां ।। मज्जत्साद्रिमहीतरोहदिकृतः श्रीमद्वराहाकृतेर्वारं कुक्षिविलीनसर्व भुवनस्याधः पदान्यस्यतः सप्ताम्भोधितलावरोधि कमठाकारेति पृष्ठे वहन् जज्ञे यो ननु यादसां भ्रमवशात्सोति हता६. न्मेच्युतः ॥ क्रीडामात्रकमेव मज्जति महीचक्रे वराहाकृते सद्भावं कृतकेतुविभ्रमकृता यस्यो... .ते दंष्ट्रया अप्यैक्यं गतमर्णवाम्वनसहं यद्रोमकूपा भवेत् . . . . सवातिद्य (ति ह) तात् ।। कल्पांताभ्र७. रव: शिखग्निनयनः प्रक्षिप्ततारोत्सवः प्रल्हादावनयः. . . . द्रुतमय: श्रीमद्वराहाकृतिः प्रव्हीं द्रोद्रुतकंधरस्य विलसद्धिद्युत्सजिव्होज्वलद्देवः क्रूधनख . . . . जिद्दक्षाहत्तान्मेभयं ॥ भक्तेनिः फलतानतावदु. . . . ८. चितास्वभुमिराज्यः श्रियः . . . . पाताललोकं......श्रीमान्भक्तपरायणः . . . . . करालनील जलदप्रोद्दाम संघोघ९. नः सर्वाशागगनावरोधनस. . . . मनोरमवन. . . . स्यामले गुंजागुच्छककर्णपूररु१०. चिरे गोपीदृशां दोहृदे बर्दापीडितशेखरे . . . . कालिंदी वनगोचरे विहरति श्यामाभ्र को. . . . ग... .द्यः प्रीणन . . . .सत्यानमग्नात्मनि. . . . ११. दुत्सुकमिलद्गोपीजनप्रावृते श्रीकृष्णे. . . . वहिमे . . . . वा. . . . पेत्यदुर्बहगिरिप्रायस्तनी भिमिषा.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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