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परमार अभिलेख श्रीपालो गुणपालकश्च विपु
ले] खण्डि[ल्लवा]ले कुले सूर्य (र्या) चन्द्रमसाविवाम्व (म्ब)रतले प्राप्तौ क्रमान्मालवे ॥१॥ श्रीपालदिह देवपालत्न (तन)यो दानेन चिन्तामणिः शान्तेः (शांति) श्री] गुणपाल ठकु (क्कु) र सुताद्रूपेण कामोपमात् । पूनीमर्थजनेल्हुकप्रभृव (त)यः पुत्राग्र (श्च) येग्रा नव तेः (तैः) सवरपि कोशवर्द्धनत
ले रत्नत्रयः (यं) कारितं ॥२॥ वर्षे रुद्रशते (ते) र्गतैः सु(शु) भतमैरका (क) नवत्याधिकवैशाख (खे)धवले द्वितीय दिवसे देवान्प्रतिष्ठा
पितान् । वन्दन्ते नतदेवपालतनया माल्हूसधान्वादयः पु(पू)नीसान्तिसुताश्च नेमिभरताः श्रीशन्तिसत्कुन्थ्वरान्
॥३॥ दांदिसूत्रधरोत्पन्नः (न) सी (शि)लाश्री सूत्रधारिणा। शांति[कु]न्थू (थ्व) रनाम (मा)नो जयन्तु घटिता जिनाः ॥४॥ देवपाल सु
तेल्हुकः गोष्ठिवीसल लल्लुकः (काः)। माउकः हरिश्चन्द्रादिः गागास्व (सु) पुत्रः अल्लकः ।।५।। संवत् ११९१ वैसाष (ख) सुदि २ [मं]८. गलदिने प्रतिष्ठा करापिता (कारिता) ॥:॥
(अनुवाद) ......माहिल की अंतिम भार्या . . . .तिलक स्वरूप सूर्याश्रम नगर में....सूर्य चन्द्र के समान विशाल खण्डेलवाल कुल में श्रीपाल व गुणपालक हुए जो क्रम से मालवा में आये ॥१॥
श्रीपाल के देवपाल नामक पुत्र हुआ जो दान देने में चिंतामणि के समान था; गुणपाल ठक्कुर का पुत्र शांति था जो कामदेव के समान था। उससे पूनि, मर्थ, जन, इलहुक आदि नौ पुत्र हुए। उन सब ने कोशवर्द्धन तल में तीन रत्न बनवाये ।।२।। .. ग्यारह सौ में इक्कानवे अधिक शुभ वर्ष में, वैसाख मास के शुक्ल पक्ष में द्वितीया के दिन किये गये हुए, देवपाल के पुत्र मालहु व सधानु आदि पूनी व शांति के पुत्र नेमि भरत आदि प्रतिष्ठापित शांति, कुन्थु व अर देवों की वन्दना करते हैं ॥३॥
दांदि नामक सूत्रधार से उत्पन्न शिलाश्री नामक सूत्रधार ने शांति, कुंथु व अर जिन तीर्थंकरों की मूर्तियां बनवाई। उनकी जय हो ॥४॥
देवपाल के पुत्र इल्हुक, गोष्ठि, वीसल, लल्लुक, माउक, हीर, चन्द्र आदि, गागासु के पुत्र अल्लक ।।५।।
७. संवत् ११९१ वैसाख सुदि २ ८. मंगल (वार) के दिन प्रतिष्ठा करवाई।
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