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नागपुर प्रशस्ति
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सिंहासन संभाला एवं ११३३ ईस्वी तक शासन किया। इस प्रकार प्रस्तुत अभिलेख की तिथि उसके शासनकाल में पड़ती है ।
अभिलेख का प्रारम्भ उपरोक्त तिथि से होता है । फिर नरेश नरवर्मन के शासन का उल्लेख है । उसके बाद दानकर्ता के वेमक वंशीय होने का उल्लेख है । आगे श्लोक में कहा गया है। कि दो जिन मूर्तियों को चिल्लण के द्वारा प्रतिष्ठापित करवाया गया । वह नेमिचन्द्र का पौत्र व श्रेष्ठिन राम का पुत्र था । इस प्रकार चिल्लण व्यापारी वर्ग का था तथा भोजपुर का निवासी था । इनमें से एक प्रतिमा वही है जिस पर अभिलेख उत्कीर्ण है ।
यहां यह जानना रोचक है कि उक्त जैन मंदिर में ही तीर्थंकर शांतिनाथ की विशाल प्रस्तर प्रतिमा पर भोजदेव कालीन है ( अभिलेख १७ ) । इस प्रकार भोजपुर नगर नरेश भोजदेव द्वारा
बसाया गया था ।
(मूल पाठ) १. सम्[व]त ११५७ [श्री नरवर्म्म स्वा (सा) म्राज्ये वेम२. कान्वय ( ये )
३.
४.
मधु (न्द्र ) स ( सुतः स्रे ( श्रे) ष्ठी रामाख्या नु
तत्पुत्र चिल्लणाख्येन जि[न]
युग्मं प्रतिष्ठितं (तम्) ।। (१।। ) (अनुवाद)
संवत् ११५७ | श्री नरवर्मन के
साम्राज्य में वेमक वंश में
नेमिचन्द्र सुत श्रेष्ठिन् राम के पुत्र चिल्लण के द्वारा दो जिन ( मूर्तियों) को प्रतिष्ठापित
करवाया गया ||१||
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णि सुतियः ।
(३६)
नागपुर का नरवर्मन का संग्रहालय प्रस्तर अभिलेख ( नागपुर प्रशस्ति ) ( संवत् ११६१ = ११०४ ई.)
प्रस्तुत अभिलेख एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण है जो नागपुर के केन्द्रीय संग्रहालय में सुरक्षित । इसका विवरण बालगंगाधर शास्त्री ने ज. ब. ब्रां. रा. ए. सो., १८४३, भाग १, पृष्ठ २५९ व आगे छापा था। प्रो. लॉसेन ने जर्मन भाषा में इसका विवरण एक जर्मन जर्नल में छापा । प्रो. कीलहार्न ने एपि. इं. १८९४, भाग २, पृष्ठ १८० व आगे में इसका विवरण छापा ।
अभिलेख का आकार १३७ x ८४ सें. मी. है। इसके कुछ नीचे एक पंक्ति १५२ सें. मी. लम्बी है । लेखकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । नीचे का आधा भाग काफी क्षतिग्रस्त है । कुछ अक्षर टूट गए हैं । श्लोक ३४, ४५, ५१ के कुछ अक्षर पढ़े नहीं जा सकते हैं । अभिलेख ४१ पंक्ति का है । अक्षरों की बनावट ११वीं - १२वीं शती की नागरी लिपि है । अक्षर ध्यान से खोदे नहीं गए हैं। छेनी के कुछ निशान बन गए हैं । अतः अनेक अक्षरों में भ्रम होता है । अक्षरों की सामान्य लम्बाई १.५ सें. मी. है।
भाषा संस्कृत है । प्रायः सारा अभिलेख पद्यमय है । इसमें अनेक छन्दों का प्रयोग किया गया है, परन्तु प्रधानता शार्दूलविक्रीडित छन्द की है । कुल ५८ श्लोक हैं । श्लोकों में क्रमांक नहीं हैं
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