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७.
परमार अभिलेख
कार्य से युक्त, शक्तियुक्त, शास्त्र मार्ग से उदयादित्य नरेश ने आत्मकल्याण हेतु अनेक प्रकार से कीर्ति प्राप्त की । विगत ४४६ वर्षों से ले कर
८. कलियुग में धर्म का त्याग कर के लोग देवालयों की पूजा से विरत हो गये थे व नरेशों
में धर्म का लोप हो गया था। इनके गोत्र (कुल) विख्यात हों, तप वृद्धि हो, तेजयुक्त हो, उसने जम्बूद्वीप को
९. भगवती का निवासस्थल बना कर नरेशों में धर्माचरण के लिये, पुण्य के पालन के लिये, योगधर्म की प्रसिद्धि के लिये बाहुबल से विजय प्राप्त की । शत्रु नरेशों को जीतने के उपरांत पुनः
१०. उनका अधिकार सौंप कर सब कोई शास्त्रमार्ग से कीर्ति संचित करे व शिव का पूजक बने, धर्म में तत्पर होवे, धर्म में दाता होवे आदि .
११. इस प्रकार जन्म से लेकर सन्मार्ग में संलग्न शालवाहन ( ? ) के समान दयायुक्त, हर्ष से परिपूर्ण उसका पुत्र समस्त लक्षण युक्त, सभी गुणों से युक्त ऐसा जान कर पूजा पात्र, दानपात्र सहित
१२. सूर्योदय पर स्नान कर अपनी मति को धर्म अर्थ में लगा कर शिवजी की भक्ति से देव-देव (महादेव) की शरण में जाने से इच्छा प्राप्ति व इष्ट सिद्धि होती है ऐसा मान कर
१३. विक्रम काल में पंद्रह सौ बासठ कार्यपति ( नरेश), अग्निभक्त, चौदह सौ सैंतालीस १४. ४१६० कलि वर्ष व्यतीत
१५.
. युग संवत्सर ४३३९ वर्ष ( ? ) व्यतीत होने पर और परिवत्सर के ४०० युग ( ? ) व्यतीत होने पर, ब्रह्म (जन्म) के बीस वर्ष के
१६. चैत्र मास शुक्ल पक्ष तेरहवीं तिथि, बालव करण, परिंग योग, शुभ लग्न, शुभ वर्ग में १७. अहिमरश्मि (सूर्य) के उच्च राशिगत होने पर शुक्र मीन राशिगत होने पर बुधवार को..... दान आदि दे कर तब महान पुत्र के संस्कारों को सम्पन्न कर
१८. राजपुत्र को युवराज ( कर्माध्यक्ष ) पद पर नियुक्त कर दिया । वह सत्कर्म के विस्तार से पृथ्वी पर नियुक्त उस (पिता) की छाया में रहते हुए दोनों ही सत्कर्म में प्रवृत्त हुए, जिससे दोनों लोकों में सुख की प्राप्ति हो । उनके सत्कार्यों का यह प्रशस्ति रूप (अभिलेख ) गुरुदेव भक्त, वेदों के गायन
१९. रस में निपुण, गो-विप्र को संतुष्ट करने वाला, ज्योतिष शास्त्र एवं शिक्षाशास्त्र में निपुण, आप्यायी नामक ब्राह्मण ने गुण वर्णन वाली
२०. अति विशिष्ट स्तुति के बहाने से देवालय में स्थित चन्द्र व सूर्य के रहते तक के लिये यह प्रशस्ति लिखी है ।
२१. जब तक यह पृथ्वी, सूर्य, स्वाहा ( अग्नि- पत्नि), मेरू महानदी स्थित हैं, तब तक पुत्रोंपौत्रों को इसके ( माध्यम से ) शास्त्रों में शिक्षित किया ( जावे ) । यह पुस्तक ( प्रशस्ति ) मेरे द्वारा लिखी गई । यदि मेरे दोषों को ( दिखावें तो मैं ) संतुष्ट हूंगा । २२. सिद्धि हो । ( यह प्रशस्ति ) सूत्रधार सित के पौत्र सन्ततदेव के पुत्र वसल की गई ) जो महाराज के दासों का दास है ।
द्वारा उत्कीर्ण
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