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ने राजा को कैद से छुडाया और स्वयं बलपूर्वक नगर से बाहर निकल गई। बादल उनके साथ चित्तौड़ पहुंचा। गोरा ने पीछा करने वाली मुसल्मानी सेना से लडकर वीरगति प्राप्त की। कुछ समय के बाद राजा ने कुम्भलमेर पर आक्रमण किया और घायल होकर स्वर्गस्थ हुआ। पद्मिनी और उसकी सपत्नी नागमती सती हुई। इतने मे ही अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर फिर आक्रमण किया। इस बार अलाउद्दीन की विजय हुई। बादल युद्ध मे काम आया और चित्तौड पर मुसल्मानों का अधिकार हुआ।
इस रूप मे कथा ऐतिहासिक मी प्रतीत होती है। किन्तु जायसी ने सव कथा को रूपक बतला कर उसकी ऐतिहासिकता को अत्यन्त संशयास्पद बना दिया है। उसने लिखा है, "इस कथा मे चित्तौड शरीर का, राजा मन का, सिंहलद्वीप हृदय का, पद्मिनी बुद्धि का, तोता मार्गदर्शक गुरु का, नागमती ससार के कामों की, राघव शंतान का और अलाउद्दीन माया का सूचक है' ।”
फरिश्ता ने अपनी तवारीख पद्मावत से लगभग सत्तर वर्ष के बाद लिखी। उसकी कथा जायसी की कथा से मिलती
१-देखें डा. ओमा रचित, उदयपुर का इतिहास पहली जिल्द
पृ० १८३-१८७