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भी इसी कसौटी पर परख कर सिद्ध या असिद्ध की जा सकती है।
पद्मिनी का सबसे प्रमिद्ध वर्णन मन् १५४० ई० मे रचित जायसी के 'पद्मावत' काव्य मे है। उसके अनुसार पद्मिनी सिंहलद्वीप के राजा गधर्वसेन की पुत्री थी और रतनसेन चित्तौड का राजा था। हीरामन तोते के मुख से पद्मिनी के नौन्दर्य का वर्णन सुनकर रतनसेन योगी बनकर मिहल पहुंचा
और अन्ततः पद्मिनी से विवाह करने मे सफल हुआ। चित्तौड की राज्य सभा मे गघवचेतन नाम का एक तात्रिक ब्राह्मण था। राज्य से निर्वासित होने पर वह दिल्ली पहुंचा। उसने अलाउद्दीन के सामने पद्मिनी के सौन्दर्य की इतनी प्रशसा की कि सुल्तान ने पनिनी की प्राप्ति के लिए चित्तौड पर घेरा डाल दिया। जब बल से काम न चला तो अलाउद्दीन ने छल से काम लिया । वह अतियि रूप में चित्तौड पहुंचा और दर्पण मे पद्मिनी का प्रतिबिंब देखकर मुग्ध हो गया । जब राजा उसे पहुँचाने के लिए सातव द्वार तक पहुँचा तो अलाउद्दीन ने उसे सहसा पकड़ लिया और केटी बनाकर दिल्ली ले गया। केंद से छुटने की केवल मात्र शर्त यही थी वह पद्मिनी को दे दे। उधर गोरा और वादल की सलाह से पद्मिनी ने भी छल से राजा को छुडाने का निश्चय किया। वह सोलह सौ डोलियों मे बी वेपवारी राजकुमारों को विठला कर दिल्ली पहुंची। थोड़ी सी देर के लिए राजा से मिलने का बहाना कर पद्मिनी