Book Title: Ogh Niryukti Part 01
Author(s): Gunhansvijay, Bhavyasundarvijay
Publisher: Kamal Prakashan Trust
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નિર્યુક્તિ
(भा.-१33
श्रीमोध- त्यु
___ अलसो आलसितो सो वेयावच्चं न कारेयव्वो, जदि कारवेइ असमाचारी, सो आलस्सेण ताव अच्छड़ जाव फिडिओ देसकालो, ताहे पच्छा सड्ढयाणि जं किंचि देंति तेण आयरिआईणं विराहणा, अहवा सो अइप्पए वच्चइ कम्म निस्सारितं होउत्ति, ताहे तत्थ अकाले वच्चंतस्स तस्स ते चेव दोसा, अथवा ताणि धम्मसड्डियआणि उस्सक्कणदोसे अवसक्कणदोसे वा करिज्जा ठवियगदोसा वा, अहवा आयरियनिमित्तं पए वा उस्सूरे वा उवक्खडिज्जा, एते एवमाइया अलसे दोसा ।
घसिरो बहुभक्खणो, सोवि न पट्टवेयव्वो, सो पढमं चेव अप्पणो अट्ठाए हिंडइ पज्जत्तं, जाव सो अप्पणो पज्जत्तं हिंडइ ताव फिडिआ वेला, अहवा तत्थेव पढमं वच्चइ पच्छा तत्थ य ण चेव वेला होइ, ते चेवोस्सक्कणादिआ दोसा, भ अहवा तत्थ सडकुले पभूयं गिण्हइ ताहे उग्गमदोसा न सुझंति ।
सुविरो ताव सुवइ जाव फिडिआ भिक्खावेला, अहवा पढमं तत्थ गंतुं अवेलाए पच्छा सुयइ ते चेव दोसा ।
खमओ जाव अप्पणो हिंडइ ताहे आयरिआ परितावणादि पावंति, अह खमओ पढमओ आयरिआणं गिण्हइ ततो अप्पणो परितावणादि पावइ ।
कोहिल्लो पुव्वलाभाओ फिडितो कसातिओ संतो भणइ-अम्हे अण्णतो लभामः, तंपि तुज्झपच्चएण न गिण्हामो, अहवा थेवं लब्भइ तत्थ भंडइ, अहवा ऊणं पाणेण वा जेमणेण वा तत्थवि रूसति,
वा॥ ७७८॥

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