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५. सम्यक व मिथ्या ज्ञान
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१०. वस्तु पढने का उपाय
यह सिद्धान्त वस्तु के विश्लेषण का मूल आधार है । नीचे के चित्रण पर से यह बात स्पष्ट हो जायगी।
५ १० १५ २० | २५ ३०
चित्र न १
ऊर्ध्व प्रचय
क्रमवर्ती, पर्याय (आगे पीछे रहने, वाली, व्यतिरेकी
१३ २४
२६
२ | ७ | १२ | १७ | २२ | २७
१, १६, २१ २६
क ख ग घ च छ (एक साथ रहने वाले, अन्वयी, सहवर्ती, या अक्रमवती गुण)
तिर्यकप्रचय कल्पना करो कि उपरोक्त चित्र मे एक वस्तु प्रदर्शित की गई है, जिसमे क, ख, ग, घ, च, छ, यह ६ गुण है, जो एक ही समय वस्तु मे पाये जाते है, आगे पीछे नही। इसीलिये इन्हें अक्रमवती या सहवर्ती अंग कहते है इनके साथ साथ रहने मे कोई विरोध नही इसलिये इनको अन्वयी कहते है। क्योकि यह इस चित्र मे पट लाइन पर अर्थात् ( Horizental Axis ) पर दिखाये गये है इसलिये इनको आगम मे तिर्यग्प्रचय कहा जाता है । एक के ऊपर एक चिनी गई १, २, ३ आदि उस गुण की पर्याय है । क्योकि यह क्रम से आगे पीछे होती है इसीलिये इन्हे क्रमवर्ती अंग कहते है । क्योकि एक पर्याय के रहते उसी गुण की दूसरी पर्याय नहीं होती। दो पर्यायो के साथ साथ होने मे विरोध है इसलिये इन्हे व्यतिरेकी कहते है । क्योकि ऊपर खड़ी लाइन (Vartecal Axis ) पर दिखाई गई है इसलिये इनको ऊर्ध्वप्रचय कहते है ।
यहा दृष्टांत में प्रत्येक गुण की पांच पांच पर्यायों को ग्रहण किया है : न. एक से पाच तक कि पर्यायें 'क' नाम गुण की है नं. ६ से १०