Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 800
________________ २२, निक्षप ७६७ ६. निक्षेपो का नयो में अन्तर्भाव प्ररूपण करने के लिये सम्पूर्ण निक्षेपों का कथन किया जाता है ( अर्थात उस प्ररूपणा मे सर्व ही निक्षेपों को लागू करके दिखाया जाता है ) क्योकि विशेष धर्म के निर्णय के बिना विधि का निर्णय नहीं हो सकता है । दूसरी और तीसरी जाति के श्रोताओ को यदि सन्देह हो, तो उनके सन्देह को दूर करने के लिये भी सम्पूर्ण निक्षेपों का कथन किया जाता है । और यदि उन्हें विपरीत ज्ञान हो गया हो तो प्रकृत अर्थात विवक्षित वस्तु के निर्णय के लिये भी सम्पूर्ण निक्षेपो का कथन किया जाता है कहा भी है 1 “अवगय गिवारणट्ठ पयदस्स परूवणा निमित्त च । ससय विणासणट्ठ तच्चत्यवधारण च । १५।” L अर्थ - अप्रकृत विषय के निवारण करने के लिये, प्रकृत विषय के प्ररूपण करने के लिये, सशय का विनाश करने के लिये और तत्वार्थ का निश्चय करने के लिये निक्षेपो का कथन करना चाहिये । यह निक्षेपो के प्रयोग का प्रयोजन है । निक्षेपों का पृथक कथन करने पर ऐसा भ्रम हो सकता है कि इन ६. निक्षेपो का नयो का विषय नयों से पृथक कुछ अन्य ही है । मे अन्तर्भाव वास्तव में ऐसा नही है । कोई भी विषय लोक में ऐसा नही जो नयों के पेट मे न समा जाये । अतः निक्षेपों का कोई 3 स्वतंत्र विषय हो ऐसी बात नही । शंका:-फिर नय व निक्षेप में क्या अन्तर है ? उत्तर:- इस शंका का उत्तर आगम में निम्र प्रकार दिया है, उस पर से ही शंका का निवारण हो जाता है ।

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