Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 798
________________ २२ निक्षेप ७६५ ८. निक्षेप के कारण व प्रयोजन क्रमश-गो. क.म् ।८६ "नो आगम भाव. पुन. स्वकस्वककर्म फलसंयुतो जीवः । पुद्गलविपाकीना नास्ति खलु नोआगमो भाव. ।८६।" अर्थ-जिस जिस प्रकृति का जो जो फल है तिसतिस अपने अपने फल को भोगता जीव तिसतिस प्रकृति का नो आगम भाव कर्म जानना। नोट:--(इन दोनों उद्धदरणों में 'कर्म' के विषय पर निक्षेप लागू करके दिखाया है ।) निक्षेप के यह सामान्य लक्षण बताए, इनको जिस किस विषय ८. निक्षेप के कारण पर लाग किया जा सकता है । जिस विषय प्रयोजन का ज्ञाता प्रकृत हो उसी प्रकार का निक्षेप उसमे किया जाना चाहिये-जैसे सामायिक शास्त्र के ज्ञाता को सामायिक कहना और मगल शास्त्र के ज्ञाता को मंगल कहना। लक्षणो मे दिये गये उद्धरणों मे 'मंगल' के विषय पर निक्षेपों को लागू करके दिखाया गया है। शब्द व्यवहार लोक मे चारों ही अपेक्षाओं से चलता है । चारों ही किसी न किसी अपेक्षा सत्य है, क्योकि श्रोता के ज्ञान को खेच कर अपने वाच्य पदार्थ के साथ जोडने में सर्व ही समर्थ है । यद्यपि चारो ही सत्य है पर फिर भी चारों मे उत्तरोत्तर अधिकाधिक सूक्ष्मता व सत्यता है । नाम निक्षेप केवल काल्पनिक सत्य है । स्थापना निक्षेप यद्यपि भी काल्पनिक सत्य है पर नाम निक्षेप की अपेज्ञा अधिक । द्रव्य निक्षेप भूत भविष्यत काल की अपेक्षा वस्तुभूत सत्य है और भाव निक्षेप साक्षात सत्य है । शब्द व्यवहार की यह सत्यता ही इन निक्षेपों की उत्पत्ति का कारण है। या यों कहिये कि पदार्थ व शब्द मे वाच्य वाचक सम्बन्ध होना ही इन का कारण है।

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