Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 802
________________ ၆e २२ निक्षेप ६. निक्षेपो का नयो मे अन्तर्भाव का जो स्वय क्षेपण करता है अर्थात् 'इस प्रकार का यह' ऐसा केवल उपचरित गुण का आक्षेप करता है वही निक्षेप कहलाता है। नय व निक्षेप मे क्या अन्तर है यह बात प्रकरण न० १ मे स्पष्ट की जा चुकी है। यहा तो केवल इतना कहना इष्ट है कि अर्थ या पदार्थ की अपेक्षा समानता रखने के कारण निक्षेपो को यथा योग्य रूप मे नयो मे गर्भित किया जा सकता है । क्योकि निक्षेपो का काम वस्तु का प्रतिपादन करना मात्र है हेयोपादेयता दर्शाना नहीं, इस लिये इन का अन्तर्भाव आगम नयो मे ही किया जा सकता है, अध्यात्म नयो मे नही । जैसा कि नीचे दर्शाया गया है । १ नाम निक्षेप इस का अन्तर्भाव नैगम नय अथवा उस के भेद जो सग्रह व व्यवहार इन द्रव्यार्थिक नयो मे होता है । कारण यह है कि नाम निक्षेप का व्यापार किसी पदार्थ का नाम रखना है । वाच्य वाचक रूप द्वैत भाव के बिना वह सम्भव नहीं है । पर्याय क्षण वर्ती होती है इसलिये उसमे शब्द द्वारा सकेत करना नहीं बन सकता, क्योकि जिस समय शब्द बोला जायेगा उस समय पर्याय विनष्ट हो चुकी होगी, तब वह शब्द किसी को वाच्य बनायेगा । स्थायी वस्तु का ही कोई नाम रखा जा सकता है अत नाम निक्षेप द्रव्यार्थिक है । यहा यह शका हो सकती है कि तीनो शब्द नय पर्यायार्थिक है । वहा शब्द व्यवहार कैसे सम्भव है । इसका उत्तर यही है कि अर्थगत भेद की वहा प्रधानता नही है शब्द की प्रधानता है । शब्द स्वयं पर्याय स्वरूप ही होता है । इस लिये उस को विषय करने वाले शब्द नय पर्यायार्थिक कहे गए है । इस लिये पर्यायार्थिक नयो द्वारा शब्द व्यवहार होने में कोई विरोध नहीं ।

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