Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 799
________________ २२. निक्षप ७६६ ८ निक्षेप के कारण व प्रयोजन निक्षेपों को छोडकर वर्णन किया गया सिद्धान्त संभव है कि वक्ता व श्रोता दोनों को कुमार्ग मे ले जावे, इसलिये निक्षेपों का कथन अवश्य करना चाहिये । जहा उस उस विषय के सम्बन्ध में बहुत जानकारी हो वहा पर नियम से वक्ता को सभी मूल व उत्तर निक्षेपो के द्वारा उन विषयों का विचार करना चाहिये । और जहा पर बहुत न जाने तो वहा पर चार मूल निक्षेप अवश्य करने चाहिये अर्थात चार निक्षेपो के द्वारा उस वस्तु का विचार अवश्य करना चाहिये। कहा भी है - ध।पु १।पृ ३१ 'श्रोता तीन प्रकार के होते है-पहिला अव्यु त्पन्न अर्थात वस्तु-स्वरूप से अनभिज्ञ, दूसरा सपर्ण विवक्षित पदार्थ को जानने वाला, और तीसरा एक देश विवक्षित पदार्थ को जानने वाला । इनमे से पहिला श्रोता अव्युत्पन्न होने के कारण विवक्षित शब्द या पद के अर्थ को कुछ भी नहीं समझता । दूसरा 'यहा पर इस पद का कौनसा अर्थ अधिकृत है' इस प्रकार विवक्षित पद के अर्थ में सन्देह करता है अथवा प्रकरण प्राप्त अर्थ को छोड़ कर दूसरे अर्थ को ग्रहण करके विपरीत समझता है। दूसरी जाति के श्रोता के समान तीसरी जाति का श्रोता भी प्रकृत पद के अर्थ में या तो सन्देह करता है, अथवा विपरीत निश्चय कर लेता है । इन मे से यदि अव्युत्पन्न श्रोता पर्यायार्थिक नय की अपेज्ञा वस्तु की किसी विवक्षित पर्याय को जानना जाहता है तो उस अव्युत्पन्न श्रोता को प्रकृत विषय की व्युत्पत्ति के द्वारा अप्रकृत विषय का निराकरण करने के लिये निक्षेप का कथन करना चाहिये । यदि वह अव्युत्पन्न श्रोता द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा सामान्य रूप से किसी वस्तु-का स्वरूप जानना चाहता है, तो भी निक्षेपो के द्वारा प्रकृत पदार्थ का

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