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५. सभ्यक व मिथ्या ज्ञान
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१०. वस्तु पढने का उपाय
मे आने लगे कि यह है वह आत्मा नाम का पदार्थ, यहां रखा हुआ, मेरे हृदय पट पर-बिल्कुल उस प्रकार जिस प्रकार अग्नि नाम पदार्थ के चित्रण की प्रतीति होती है। परन्तु आत्म नाम के अदृष्ट पदार्थ का इस प्रकार का चित्रण तो आगे जाकर उस ही समय होना सभव है, जब कि उसकी शान्ति का रसास्वादन हो जाये, और वह शब्दो मे समझाया जाना असभव है। वह तो जीवन के ढलाव से उत्पन्न हो सकता है, और कदाचित जीवन पर से ही पढा भी जा सकता है। अन्तिम लक्ष्य तो वह है । इसलिये शाब्दिक उपरोक्त अभ्यास पर भी सतोष पा लेना योग्य नहीं , पर आगे बढ़ते रहना ही योग्य है, कि अनसंधान द्वारा उसका प्रत्यक्ष साक्षात न कर ले।
, पर प्रत्यक्ष करने से पहिले इस परोक्ष चित्रण को अवश्य आवश्यकता पड़ेगी। बिल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार कि वैज्ञानिक मार्ग मे प्रायोगिक ( Practical ) अनुसधान से पहिले सैद्धान्तिक शिक्षण की आवश्यकता पड़ती है। इसके बिना प्रयोग (Experiments ) ही किये नहीं जा सकते, आविष्कार कैसे बने । और क्योकि यह परोक्ष. चित्रण प्रत्यक्ष चित्रण के अनुरूप ही होगा, इसलिये इसे भी. कदाचित व कथचित सम्यक् प्रमाण कह देते है । वास्तव मे तो सम्यक प्रमाण वह प्रत्यक्ष चित्रण ही है। अत. आगम रूप भी प्रमाण उसी के लिये है जिसने प्रत्यक्ष चित्रण की प्राप्ति के प्रति अग्रसर , कर उसे खोज निकाला है । फिर भी उपाय तो यही है। बिना शाब्दिक आगम का आश्रय लिये अनुसंधान करना असभव है । अतः वर्तमान स्थिति मे वस्तु का उपरोक्त प्रकार विश्लेषण करके अंगों को यथा स्थान बैठाने का अभ्यास करना ही तेरे आपके लिये कार्य कारी है। धैर्य पूर्वक अभ्यास करें।
बड़ा उलझा हुआ कथन किया है जिसमे अनेको प्रमुख प्रमुख शब्दो
के लक्षण बनाने मे आये है । ताकि आगे आगे