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द्रव्य पर्याय नैगम नय
अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम और ४.
१२ नैगम नय
व्यञ्जन पर्याय नैगम, ३ अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम |
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दन भेदो मे इतना ध्यान रखने योग्य है कि ससारी जीवों के इन्द्रिय गम्य तथा अनुभव गोचर क्षणिक पर्याय या औदयिक भाव तो अशुद्ध पर्याय रूप से ग्रहण की गई है और पर्याय के सहज सत्ता मात्र स्वभाव को शुद्ध पर्याय रूप से ग्रहण किया गया है । शुद्ध पर्याय से तात्पर्य यहा क्षायिक भाव नही है । अशुद्ध पर्यायो को धारण करने वाली द्रव्य पर्याय को अशुद्ध द्रव्य रूप से ग्रहण किया गया है और द्रव्य के सत् सामान्य मात्र स्वभाव को शुद्ध द्रव्य के स्थान पर समझा गया है । सत् एक सामान्य भाव है, जिसमे सर्व गुणों व पर्याय का अस्तित्ल गर्भित है, इसलिये इसे शुद्ध कहते है | उत्पाद व्यय व ध्रुव इसकी विशेषताये है इसलिये यह नित्यानित्य है । इस सहज स्वभाव के दर्शन द्रव्य के त्रिकाली सत् मे जैसा होता है उसी प्रकार पर्याय की क्षणिक सत्ता मे भी होता है, अत दोनो ही भावो को यहा शुद्ध शब्द का वाच्य वनाया गया है ।
आगे इस नय के भेदो का कथन करते समय जब शुद्ध द्रव्य पर्याय नयो का कथन करने मे आयेगा तव तो शुद्ध द्रव्य या सत् को विशेषण वनाकर, उस पर मे शुद्ध पर्याय का सकल्प किया जायेगा, और जव अशुद्ध द्रव्य पर्याय नयो का कथन करने मे आयेगा तब अशुद्ध पयाय को विशेषण वनाकर, उस पर से अशुद्ध द्रव्य का सकल्प किया जायेगा । ऐसा ही नियम यहा प्रयोजन वश अगीकार किया गया है । वह प्रयोजन क्या है, इस बात का उत्तर आगे समन्वय के अन्तर्गत किये जाने वाले शका समाधान मे किया जायेगा ।
अव इन्ही सामान्य व विशेष भेदो का पृथक पृथक कथन करने मे आता है ।