________________
१३. सग्रह व व्यवहार नय ३२५ . ५. व्यवहार नय विशेष ही है । यह तो इस नय का कारण हुआ। और वस्तु की विशेषताओं व उसके भेद प्रभेदों का परिचय देना, अथवा सग्रह के विषय पर से कदाचित् ग्रहण कर लिये गये एक अद्वैत ब्रह्म के एकान्त का निरास करके, यथा योग्य रूप से विश्व की अनेकता का परिचय देना इस नय का प्रयोजन है । वैशेषिकों की दृष्टि का आधार यही नय है । ५. व्यवहार नय इस नय के दो भेद हैं-श द्धार्थ भेदक व्यवहार
और अशु द्धार्थ भेदक व्यवहार। अब उनका ही कुछ कथन किया जाता है ।
विशेष
१. शुद्धार्थ भेदक व्यवहार -
. शुद्ध संग्रह नय के विषय में भेद डालने वाले नय को शुद्धार्थ भेदक व्यवहार नय कहते है, जैसा कि निम्न उद्घारणों पर से विदित है । शुद्ध संग्रह का विषय एक अद्वैत महा सत्ता है । उसमें भेद डालकर “यह सत् जीव व अजीव के भेद से दो प्रकार का है, या जड़ व चेतन के भेद से द्रव्य सामान्य दो प्रकार का है" ऐसा कहना शुद्ध सग्रह भेदक या शुद्धार्थ भेदक व्यवहार है। इसी लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ आगम कथित उद्धरण देखिये।
१. बृ. न. च ।२१० “यः सग्रहेण गृहीतं भिनत्ति अर्थमशुद्ध शुद्धं . ' वा । स व्यवहारो द्विविधो शुद्धाशुद्धार्थ भेदकरः ।२१०। (अर्थ:-जो शुद्ध संग्रह नय के द्वारा ग्रहण किये गये शुद्ध
अर्थ को भेद रूप करता है सो शुद्धार्थ भेदक व्यवहार नय है।
२. आ. प. ।। पृ ७८ “सामान्यसंग्रह भेदको व्यवहारो यथा
द्रव्याणि जीवा जीवाः । (श्लो वा. ।१।३३।५६)