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१७. पर्यायार्थिक नय ५७२
४. पर्यायार्थिक नय
विशेष के लक्षण इस दृष्टि से देखने पर ससारी व सिध्द दोनों ही दशाओ में जो कोई भी पर्याय लब्ध होती है वह गुब्द ही है। फिर भी दोनो में कुछ विवेक उत्पन्न कराने के लिये या लक्ष्य लक्षण भाव दर्शाने के क लिए विभाव विशेषण लगा दिया है । जिसका यह तात्पर्य है कि इस दृष्टि से देखने पर संसारी जीवो को पर्याय भी जो कि विभाव कहलाती है, सिब्दों की पयायो वत् ही शुध्द है । यहा संसारियो की विभाव पर्याय लक्ष्य है और सिध्दो की पर्याय की शुध्दता लक्षण है।
___ अव इसी लक्षण की पुष्टि के अर्थ कुछ आगम कथित उन्दरण देखिये ।
१ वृन.च ।२०४ "देहिना पर्यायान् शुध्दान् सिध्दाना भणति सदृ
शान् । य. सोऽनित्य शुध्द पर्यायग्राही भवेत्स नयः २०४।"
अर्थ- ससारी जीवो की पर्यायो को अर्थात विभाव पर्यायों
को जो सिध्दो की शुध्द पर्यायो के सहश कहता है वह अनित्य शुध्द पर्यायग्राही नय है ।
२. आप।८।पृ ७४ "कर्मोपाधिनिरपेक्ष स्वभावोऽनित्य शुध्द
पर्यायाथिको यथा सिध्द पर्यायसदशा. शुध्दा संसारिणा पाया ।" .
अर्थ- कर्मोपाधि निरपेक्ष स्वभाव अनित्य शुध्द पर्यायाथिक
नय को ऐसा जानना जैसे कि सिध्द पर्याय के सदृश ही
ससारियो की भी पर्याय शुध्द ही होती है ऐसा कहना । ३.नय चक्र गद्य । पृ ६ “विभावेऽनित्य शुध्दोऽर्य पर्यायार्थो भवेदल
संसारी जीवनिकायेषु सिध्दसदृशपर्यय. ५।