Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 777
________________ २२. निक्षेप ७४४ ४ नाम निक्षेप इन्ही सब भेद प्रभेदो के लक्षण आदि करने मे आते है । ४ नाम निक्षेप 'गुणों आदि की अपेक्षा किए बिना किसी व्यक्ति या किसी वस्तु को अपनी मर्जी से जो कोई भी नाम दे देना नाम निक्षेप कहलाता है, क्योकि उस शब्द को सुनकर श्रोता उस वस्तु का ग्रहण ज्ञान में कर लेता है । ऐसे शब्दो के, व्याकरण के आधार पर निरुक्ति अर्थ नही किए जा सकते, जैसे किसी अन्धे का नाम नैन सुख रख देना । इस शब्द का अर्थ यद्यपि नेत्रवान है परन्तु यहां इसका अर्थ ग्रहण नही होता, बल्कि उस नाम वाले व्यक्ति विशेष का ही ग्रहण होता है, भले ही वह अन्धा क्यो न हो । हमारे और आपके सब नाम नाम - निक्षेप से रखे गये है । अत. नाम निक्षेप केवल कल्पना है सत्य नही । द्रव्य वाची, पर्यायवाची, गुण वाची इत्यादि अनेको प्रकार के शब्द या नाम होने सम्भव है, इसीलिये नाम निक्षेप के भी अनेको अन्तर भेद हो जाते है, जैसे जाति वाचक नाम, सयोग वाचक नाम, समवाय द्रव्य वाचक नाम, गुण वाचक नाम, क्रिया वाचक नाम, प्रत्यय वाचक नाम, अभिधान वाचक नाम । इन सब के पृथक पृथक लक्षण निम्न उद्धरणो पर से जानना । १. नाम निक्षेप सामान्य १ स. सि ।१।५।४५ “अतदगुणे वस्तुनि संव्यवहारार्थ पुरुषकारात्रियुज्यमान सज्ञाकर्म नाम ।" २. रा. वा । १।५।१।२८ " निमित्तादन्यत्रिमित्तं अर्थ-सज्ञा के अनुसार गुण रहित वस्तु मे व्यवहार के लिये अपनी इच्छा से की गई सज्ञा को नाम कहते है । निमित्तान्तरम्, तदनपेक्ष्य क्रियमाणा सज्ञा नामेत्युच्यते । यथा परमैश्वर्थ

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