Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 789
________________ २२. निक्षेप ७५६ ६ द्रव्य निक्षेप - नो कर्म है, या यो कहिए कि ससार के लौकिक व्यापारो मे काम आने वाले धन आदिक पदार्थ लौकिक है, और मोक्ष मार्ग के लोकोत्तर व्यापार में काम आने वाले चैत्यालय आदि पदार्थ लोकोत्तर है । यह दोनो ही तीन तीन प्रकार है-सचित्त आचित्त और मिश्र । जीवित शरीर को सचित कहते है । निर्जीव पदार्थ को अचित्त कहते है । सचित्त और अचित्त के समूह को मिश्र कहते है।। ये तीनो ही जाति के पदार्थ लौकिक व लोकोत्तर दोनो ही दिशाओं मे यथा योग्य रूप से काम आते है । पिता पुत्र आदि या कुटुम्बी जनो के शरीर लौकिक सचित्त नो कर्म है । धन मकानादि लौकिक अचित्त नो कर्म है । तथा कुटुम्ब सहित धनादि से भरा हुआ घर लौकिक मिश्र नो कर्म है । क्योंकि यह तीनो ही जाति के पदार्थ राग पोषक है, और लौकिक व्यापार मे ही काम आते है, इसलिए इनको ज्ञाता कहना उस उस जाति का लौकिक नोकर्म तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य निक्षेप है। आचार्य व साधु आदि के शरीर लोकोत्तर सचित्त नोकर्म है शास्त्र चैत्यालय आदि लोकोत्तर अचित्त नोकर्म है, तथा शास्त्र पढाते हुए गुरु या साधुओं सहित मन्दिर लोकोत्तर मिश्र नोकर्म है । क्योकि ये तीनो हो जाति के पदार्थ वीतरागता के पोषक है, तथा मोक्ष सम्बन्धी व्यापार मे काम आते है, इसलिए इनको ज्ञाता कहना लोकोत्तर नो कर्म तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य निक्षेप है । यहा यह शका हो सकती है कि जीव को ज्ञाता कहना तो कदाचित ठीक भी है, क्योकि ज्ञान उसका गुण है, परन्तु शरीरो या धन आदि पदार्थों को ज्ञाता कहना तो बिल्कुल युक्त नहीं है। सो ऐसी आशंका योग्य नही, क्योकि किसी व्यक्ति के चित्र को भी 'यह अमुक व्यक्ति है' ऐसा कहने का व्यवहार देखा जाता है, अथवा रिक्शा वाले को बुलानेके लिये 'ओ क्शिा' इस प्रकार बुलाने का व्यवहार भी देखा

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