Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 781
________________ २२. निक्षेप ৩৪৭ ५. स्थापना निक्षेप १. स्थापना निक्षेप सामान्य - १. स सि।१।५।४५ "काष्टपुस्तचित्रकर्माक्षनिक्षेपादिषु . सोऽयमिति स्थाप्यमाना स्थापना ।" अर्थ.काप्ट कार्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म, और अक्षनिक्षेप आदि मे 'यह वह है' इस प्रकार स्थापित करने को स्थापना कहते हैं। २ रा वा ।१।५।२।२८ "सोऽयमित्यभिसम्बन्धत्वेन अन्यस्य व्यवस्थापनामात्र स्थापना । यथा परमैश्वर्यलक्षणो य शचीयतिरिन्द्र , 'सोऽयम्' इत्यन्यवस्तु प्रतिनियिमानं स्थापना भवति ।" अर्थ-'यह वही है' इस रूप से तदाकार या अतदाकार किसी भी वस्तु मे किसी अन्य वस्तु की स्थापना करना स्थापना निक्षेप है, यथा-इन्द्राकार प्रतिमा मे इन्द्र की स्थापना करके 'परमऐश्वर्य लक्षण वाला शची पति जो इन्द्र है वह यही (प्रतिमा) है, इस प्रकार अन्य वस्तु मे प्रतिनिधी यमान भाव को स्थापना कहते है। (स सा ।१३।ा कलश ८ की टीका) (त.सा.1१।११।११) (प्र. सा ।त.प्र.परि.नय न. १३) (वृ. न च.।२७३) (गो. क ।मू।५३।५३) २. स्थापना निक्षेप के उत्तर भेदः१ छ ।प. १।प. २०११ "वह स्थापना निक्षेप दो प्रकार का है-- सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना। इन दोनो मे से१ सद्भाव स्थापना-जिस वस्तु की स्थापना की जाती है उसके आकार को धारण करने वाली वस्तु मे सद्भाव स्थापना समझना चाहिये।

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