Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 770
________________ निक्षेप १. नय व निक्षेप मे अन्तर, २. निक्षेप सामान्य ३. निक्षेप के भेद प्रभेद, ४. नाम निक्षेप, ५. स्थापना निक्षेप, ६. द्रव्य निक्षेप, ७. भाव निक्षेप, ८, निक्षेपों के कारण प्रयोजनादि, ९. निक्षेपो का नयों मे अन्तभाव। १ नय व निक्षेप मे अन्तर नयो का विस्तार पूर्वक कथन करने के पश्चात्, अब इस ग्रन्थ मे आगम प्रसिद्ध एक अन्य विषय का भी संग्रह कर देना योग्य समझता है, क्योंकि उस विषय का सम्बन्ध भी वस्तु के प्रतिपादन या ज्ञान प्राप्ति से ही है । यद्यपि वह विषय स्वयं कोई नय नही है, परन्तु नय की ही जाति का है। उस विषय को 'निक्षेप' कहा गया है । 'निक्षेप' शब्द नि उपसर्ग पूर्वक क्षिप धातु से बना है, जिसका व्युत्पत्ति अर्थ निक्षिप्त करना होता है । आशय यह है कि लोक मे जितना भी शब्द व्यवहार होता है, उसका विभाग द्वारा वर्गीकरण करना ही निक्षेप का काम है। नय विषयी है अर्थात वस्तु को विषय करने वाला या जानने वाला है, किन्तु निक्षेप शाब्दिक विषय विभाग का ही प्रयोजक है, इस लिये इन दोनों मे मालिक भेद है । निक्षेप केवल यह बताता है कि हमने जिस शब्द या वाक्य का प्रयोग किया है, वह किसी विभाग में सम्मिलित किया जा सकता है, किन्तु नय उस शब्द प्रयोग मे जो आन्तरिक मानस परिIम या अभिप्राय काम कर रहा है उसका उद्घाटन करता है । वह तालाता है कि यह शब्द प्रयोग किस दृष्टिकोण से समीचीत है । अथवा अन्य प्रकार भी नय व निक्षेप मे भेद है। गण सापेक्ष तथा

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