Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 772
________________ २२. निक्षेप .. ७४१. २. निक्षेप सामन्य तथा अर्थ या पदार्थ के रूप में । अर्थात वस्तु का व्यवहार तीन प्रकार का है-शब्द, ज्ञान व अर्थ । अर्थ या पदार्थ भी दो प्रकार का हैअवर्तमान व वर्तमान । वस्तु की भूत व भावि पर्याये अवर्तमान अर्थ है और वर्तमान पर्याय से विशिष्ट वह वस्तु वर्तमान अर्थ है । इस प्रकोर वस्तुगत व्यवहार चार प्रकार का हो जाता है-शब्द, ज्ञान, अवर्तमान पदार्थ व वर्तमान पदार्थ । किसी शब्द या नाम के द्वारा उस वस्तु की कल्पना मात्र कर लेना जैसे किशतरञ्ज की गोटो मे हाथी धोड़े आदि की कल्पना कर लेना, यह दूसरा ज्ञान गत व्यवहार है। किसी अवर्तमान बस्तु मे ही उस वस्तु का व्यवहार कर लेन तीसरा व्यवहार है जैसे कि युवराज को राजा कहना अथवा वर्तमान मे जो मुनि है उसे राजा कहना । किसी वर्तमान या सद्भावात्मक वस्तु को ही वस्तु कहना यह चौथा व्यवहार है, जैसे कि राजा को ही राजा कहना । वस्तु को जानने या जानने के लिये ये चार ही प्रकार के व्यवहार प्रयुक्त होते है। इन मे से शब्द-गत पहिला व्यवहार नाम निक्षेप कहलाता है, कल्पना या ज्ञान-गत दूसरा व्यवहार स्थापना निक्षेप कहलाता है, अवर्तमान अर्थ-गत तीसरा व्यवहार द्रव्य निक्षेप कहलाता है और वर्तमान अर्थ-गत चौथा व्यवहार भाव निक्षेप कहलाता है । इन का विशेषे विस्तार आगे किया जायेगा। दूसरे प्रकार से निक्षेप का लक्षण यो भी किया जा सकता है, कि वक्ता व श्रोता के बीच वस्तु का व्यवहार शब्द के आधीन है । शब्द वास्तव मे किसी वास्तु का संज्ञा कारण मात्र है अर्थात किसी वस्तु का वाचक होता है। वस्तु व शब्द के बीच वाच्य वाचक भाव का व्यवहार सर्व सम्मत है । इसलिये कहा जा सकता है कि शब्द वस्तु का प्रतिनिधि है, या यों कह लाजिये कि शब्द मे वह वस्तु निक्षिप्त कर दी गई है। अतः वस्तु को बतलाने के उपाय स्वरूप शब्द व्यवहार को ही यहां निक्षेप नाम से कहा गया समझ लेना । पहिले भा कहा जा चुका है कि निक्षेप शाब्दिक विषय विभाग का प्रयोजक

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