Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 773
________________ २२. नि क्षेप ७४२ २. निक्षेप सामान्य - है । शब्द प्रयोग का वह व्यवहार चार प्रकार से करने में आता हैअतद्गुण मे, अतदाकार मे, अतत्काल मे तथा इन तीनो से विपरीत तद्गुण तदाकार व तत्काल मे । गुण आदि की अपेक्षा किये विना भी वस्तु का अपनी इच्छा से जो कुछ भी नाम रख देना अतद्गुण वस्तु मे शब्द व्यवहार करना है, जैसे निर्धन व काले कलूटे व्यक्ति का नाम इन्द्र चन्द्र रख देना, अथवा किसी व्यक्ति के फोटो या प्रतिमा मे ही उस व्यक्ति के नाम का व्यवहार करना । वस्तु के आकार की पर्वाह न करके उसमे किसी अन्य वस्तु के नाम का व्यवहार करना अतदाकार वस्तु मे शब्द व्यवहार करना है, जैसे कि शतरञ्ज की गोटो को हाथी घोडा आदि कहने का व्यवहार प्रचलित है । वस्तु की वर्तमान पर्याय की पर्वाह न करके उसे उसके भूत या भावि रूप से कह देना अतत्काल वस्तु मे शब्द ब्यवहार करना है, जैसे कि युवराज को राजा कहना या राज्य त्यक्त मुनि को राजा कहना । वर्तमान मे सद्भाव स्वरूप किसी पदार्थ को उसके गुण तथा आकार तथा काल. के अनुरूप ही नाम देना, तुद्गुण तदाकार व तत्काल वस्तु मे शब्द व्यवहार करना है, जैसे कि राजा को ही राजा कहना । इन चार प्रकार के शाब्दिक व्यवहारों के अतिरिक्त पाचवा कोई व्यवहार नही है। इन्ही चार के अनेको उत्तर भेद हो जाते है, जिनका परिचय आगे दिया जायेगा । यह सर्व शाब्दिक विषय विभाग ही निक्षेप कहलाता है । इन मे से पहिला व्यवहार नाम निक्षेप है, दूसरा स्थापना निक्षेप, तीसरा द्रव्य निक्षेप और चौथा भाव निक्षेप । इन चारों का विशेष विस्तार आगे किया जायेगा। अब निक्षेप के लक्षण की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देखिये। १०. स. सिा ।६।६।३५ "निक्षिप्यतेति निक्षेप स्थापना।" अर्थ:-जिसके जो निक्षिप्त किया जाय ऐसी स्थापना ही निक्षेप कहलाती है।

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