Book Title: Nay Darpan
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Premkumari Smarak Jain Granthmala

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Page 762
________________ २१ अन्य अनेको नय ७३१ २. सर्व नयो का मूल नयो मे अन्तर्भाव १८ नित्य नयः "आत्मद्रव्य नित्यनय से नट की भाति अवस्थायी है ।" राम रावण आदि रूप अनेक स्वागो मे एक ही नट की प्रतीति होती है, इस प्रकार से अनेक पर्यायो मे अनुस्यूत एक त्रिकाली द्रव्य को विषय करने के कारण नय न १६ वत् यह लक्षण आगम पद्धति के 'सत्ता ग्राहक शुध्द द्रब्यार्थिक व संग्रह' नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'शुध्द निश्चय' नय मे गर्भित होता है । १६ अनित्य नयः___ "आत्मद्रव्य अनित्यनय से राम रावण की भाति (नट) अनवस्थायी है ।" पृथक पृथक पर्यायो की स्वतत्र सत्ता स्वीकारने के कारण यह लक्षण भी नय न. १७ वत् आगम पद्धति के 'पर्यायार्थिक व ऋजुसूत्र' नय मे तथा अध्यात्म पद्धति के 'व्यवहार नय' मे गर्भित होता है। २० सर्वगत नयः "आत्मद्रव्य सर्वगत नय से खुली हुई आख की भाति सर्व वर्ती है।" ज्ञान की परपदार्थो मे व्यापकता दर्शाने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति का विषय नही। अध्यात्म पद्धति मे यह 'असद्भूत व्यवहार' नय में गर्भित होता है । २१ असर्वगत नयः 'आत्मद्रव्य असर्वगत नय से मिची हुई आख की भांति आत्मवर्ती है।" आत्म द्रव्य के साथ ही ज्ञान की तन्मयता दर्शाने के कारण यह लक्षण आगम पद्धति के 'भ'द निरपेक्ष शुध्द द्रव्यार्थिक व सग्रह नय' म तथा अध्यात्म पद्धति के 'शुध्द निश्चय' नय मे गर्भित होता है ।

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