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१४ ऋजु सूत्र नय
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२. ऋजु सूत्र नय
सामान्य के लक्षण तो नहीं जा सकता है । अत पूर्वापर पर्यायो मे कोई सम्बन्ध नही। जो बालक है वह वालक ही है.बूढा नही, जो बूढा है वह बूढ़ा ही है वालक नहीं । वालक ही बूढी हुआ है, ऐसा कहना इस दृष्टि मे ठोक नही, क्योकि इससे द्वैत उत्पन्न करना पडता है, जो इस नयको सहन नही । निविशेष एक समय गत वस्तु मे अन्य पर्याय की सत्ता दीख भी कैसे सकती है । अत वर्तमान पर्याय मात्र ही क्षण स्थायी सत् है।
६ लक्षण न ६ -जव आगे पीछे की पर्याय का कोई सम्बन्ध नहीं। तव किसी पदार्थ का नाम रखते समय भी यह विवेक रखना चाहिये कि नाम रखते समय वह जैसी दिखाई दे, वही नाम उसे उस समय दिया जाये । उत्तर क्षण मे उसका रूप बदल जाने पर वास्तव में वह वस्तु ही नष्ट हो गई, तब उसे उस पहिले वाले नाम से ही पुकारते रहना क्या युक्त होगा ? राजा पद पर अभिषिक्त को ही राजा कहा जा सकता है, राज्य भ्रष्ट को युवराज को नही।
नोट -इस प्रकार इस नय को विशद बनाने के लिये इसके ९ लक्षण किये गये । वास्तव मे इन लक्षणों मे एकत्व का प्रतिपादन किया है । इतनी वात अवश्य है कि किसी मे द्रव्यगत एकत्व का, किसी मे क्षेत्रगत एकत्व का, किसी मे भावगत एकत्व का दिग्दर्शन कराया गया है । इसका वे यह अर्थ नही कि ये सर्वलक्षण एक दूसरे से निरपेक्ष कोई स्वतत्र लक्षण है, अत. इन मे विरोध न देखना । कथन को सरल व सम्भव बनाने के लिये ही द्रव्यादि चतुष्टय को पृथक पृथकग्रहण करके लक्षण किये है, वास्तव से ऋजुसूत्र नय के प्रत्येक विषय मे ये सर्व ही लक्षण यगपत घटित होते है, क्योकि द्रव्यादि चतुष्टय विशेपो से सहित कोई एक प्रदेशी अखण्ड क्षणिक स्वलक्षण भूत तत्व ही इसका विषय है।
यद्यपि दृष्टि की विचित्रता के कारण सम्भवतः यह सर्व कथन पहिले पहिल कुछ अटपटा सा लगे पर सूक्ष्म दष्टि से जैसे सकत