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१२. नैगम नय
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१. नैगम नय सामान्य
विषयासक्त जीव क्षणभर के लिये सुखी हो जाता है' यहां विषयासक्त जीव रूप धर्मी मुख्य और क्षण भर के
लिये सुखी होना रूप धर्म गौण है। क्रमश:-- स म । २८। ३१७।५ धर्मद्वयादीनामेकान्तिक पार्थक्या
भिसन्धि नेगमाभास ।" अर्थः-दो धर्म, दो धर्मी अथवा एक धर्म और एक धर्मी मे
सर्वथा भिन्नता दिखाने को नैगगाभास कहते है। जैसे १. आत्मा मे सत् और चैतन्य परस्पर भिन्न है । २. पर्यायवान वस्तु और द्रव्य सर्वथा भिन्न है ।
३. सुख ओर जीव परस्पर भिन्न है । २. श्ल वा ।१।३३।२१“यद्वा नैकगमो योडत्र सतत नैगमो मतः । धर्मयोधर्मिणो वापि विवक्षा धर्ममिणोः ।
अर्थ --जो एक को विषय न करे वल्कि सदा द्वैत को विषय
करे उसे नैगम नय माना गया है । जैसे दो धर्मो में या दो धमियो मे अथवा धर्म व धर्मी मे एकता करने में आती है।
४. लक्षण नं० ४ (संग्रह व व्यवहार उभय रूप) १ ध ।१३।०१।४।१२ “यह नय सब नयो के विषय को स्वीकार
करता है।
२ ध०।१।८४१६“यदस्ति न तद्वयमतिल्लध्य वर्ततेति नैगमो नयः।
सग्रहासंग्रह स्वरूप द्रव्याथिको नैगमेति यावत्-एते त्रयोऽपि नयाः नित्य वादिनः स्व विषये पर्यायाभावतः सामान्य विशेष कालयोरभावात् ।'