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१२. नैगम नय
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४. द्रव्य नैगम
अभेद और 'अशुद्ध' शब्द का अर्थ भेद ग्रहण करना । अर्थात द्रव्य की एक रस रूप सामान्य अखण्डता को दृष्टि मे लेना ही शुद्ध द्रव्य दृष्टि है, और उसके अन्तर्गत रहने वाले गुण पर्याय आदि विशेपो का भेद करके उनके समुदाय रूप से उसे देखना अशुद्ध द्रव्य दृष्टि है ।
२ शुद्ध द्रव्य नैगम नय
इसका विशेप विस्तार करने की आवश्यकता नही। उपरोक्त द्रव्य नैगम के सामान्य लक्षण पर से ही इसका विस्तार जाना जा जा सकता है । अन्तर केवल इतना है कि यहा लक्षण शुद्ध द्रव्याथिक का विषयभूत ही होना चाहिये । या यों कहिये कि शुद्ध द्रव्याथिक के विषयभूत शुद्ध द्रव्य पर से द्रव्य सामान्य का संकल्प करना शुद्ध द्रव्य नैगम नय का लक्षण है ।
जैसे 'सत् द्रव्य है' ऐसा कहना । तहा 'सत्' यह शब्द वस्तु के उत्पाद व्यय व ध्रुव स्वरूप तीनों अशो मे अनुयुत एक सामान्य भाव का द्योतक है । इसलिये जैसा कि आगे सग्रह नय के प्रकरण मे बताया जायेगा, यह अभेद सत् शुद्ध द्रव्याथिक संग्रह नय का विपय है । अत यहा शुद्ध पर से द्रव्य सामान्य का सकल्प किया जा रहा है । अव इसी की पुष्टि व अभ्यास के अर्थ कुछ उद्धरण देता हू ।
१. श्ल. वा. पु. ४ापृ ३७ 'भेद विकल्प रहित सन्मात्र वस्तु का
संकल्प (शुद्ध द्रव्य नैगम है)" ।
२ रा. वा. हि. ।१।३३।१९८ "सग्रह नय का विपय सन्मात्र शुद्ध
द्रव्य है, ताका यह नैगम नय सकल्प करे है, जो सन्मात्र द्रव्य समस्त वस्तु है। ऐसे कहे तहा सत् तो विशेषण भया, तातै गौण भया । ब्रहरि द्रव्य विशेष्य भया तातै मुख्य है। यह शुद्ध द्रव्य नैगम है ।