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5 सप्त भंगी
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६ सात भगो की उत्पत्ति
दूसरी वह जिसने अस्ति व अवक्तव्य अंग सुने हैं पर नास्ति अंग का परिचय नही पाया है। तीसरा वह जिसने नास्ति व अवक्तव्य अग सुने है पर अस्ति अग का परिचय नही पाया है।
एक श्रेणी त्रि संयोगी श्रोताओं की भी है जिन्हों ने तीनो बाते पूरी की पूरी सुनी है।
अब यदि विचार करे तो इन श्रेणियो मे से पहिली छः श्रेणिया वस्तु स्वरूप से इतनी ही दूर हैं जितनी कि वे उस समय थी जब तक कि उन्होने कुछ भी न सुना था । केवल इतना अन्तर अवश्य पड़ा है कि ये अब उस विषय मे विवाद करने के योग्य हो गये है । परन्तु सातवी श्रेणी मे स्थित व्यक्ति वस्तु स्वरूप के अत्यन्त निकट पहुँच चुका है । वह उपरोक्त विवाद मे न पड़कर उसको साक्षात रूप जानने के लिये अवक्तव्य अंग सम्बन्धी अनुसंधान मे जुट जाता है, अर्थात अभेद वस्तु का वास्तविक स्वरूप क्या है यह जानने के लिये उद्यत हो जाता है।
उसने भी यद्यपि “एक अग अवक्तव्य है" ऐसी बात सुनी अवश्य है परन्तु जब तक उस अवक्तव्य या अनुभवनीय अग का अनुसधान द्वारा प्रत्यक्ष कर नही लेता तब तक वह भी वास्तव मे अस्ति नास्ति वाले द्वि,सयोगी भग मे ही समाविष्ट है । अन्तर केवल इतना है कि हि संयोगी अग वाला तो अवक्तव्य अंगो से बिल्कुल अपरिचित रहने के कारण उतने मात्रा मे वस्तु स्वरूप का अत समझ लेता है, अतः वह तो अनुसंधान करता ही नहीं, पर यह दूसरा जिसने उन दो अगो के अतिरिक्त इस अवक्तव्य अंग की बात भी शब्दो मे सुनी है, वह वस्तु स्वरूप का उतने मात्र मे ही अन्त समझ कर सन्तुष्ट नही होता, पर कुछ और भी अदृष्ट बात जानने के लिये अनुसंधान मे प्रवृत्ति करता है । और इस प्रकार उद्यम पूर्वक अनुसंधान मे सफल