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११. शास्त्रीय नय सामान्य
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४. सप्त नय परिचय
सामान्य
गुलाब के फूलो का सेहरा और असत्ताभूत आकाश के फूलो का सेहरा दोनो ही कल्पना मे सत् है ।
अर्थ नय की अपेक्षा करन पर नैगम नय का लक्षण 'एक को ग्रहण न करके दो को ग्रहण करना' है । अर्थात संग्रह नय के विषय भूत अभेद को, तथा व्यवहार नय के विषयभूत भेद को दोनो को ही ही युगपत परन्तु मुख्य गौण के विकल्प से ग्रहण करना नैगम नय है । तहा सग्रह नय अनेको मे अनुगत सामान्य को ही ग्रहण करके वस्तु को एक मानता है और व्यवहार नय उसी वस्तु मे अनेको द्रव्य गुण व पर्याय गत विशेषों का ग्रहण करके उसे अनेक रूप मानता है । जैसे 'जीव एक है' यह संग्रह नय कहलाता है ओर 'जीव दो प्रकार का है - ससारी व मुक्त' यह व्यवहार नय कहलाता है परन्तु इन दोनो नयों के विषयो को मुख्य गौण भाव से युगपत ग्रहण करना नैगम नय का विषय है । उसमे कही सग्रह नय का अभेद विषय मुख्य होता है तो व्यवहार नय का भेद विषय गौण हो जाता है - जैसे जो यह संसारी व मुक्त दो प्रकार का कहा जा रहा है वह वास्तव मे एक जीव ही है | कही व्यवहार नय का भेद विषय मुख्य हो जाता है और संग्रह नय का अभेद विषय गौण हो जाता है - जैसे यह जो एक जीव कहा जा रहा है वही ससारी व मुक्त के भेद से दो प्रकार का है । नैगम के इस - लक्षण, का विषय सत्ताभूत पदार्थ
! ही है, क्योंकि यह अर्थ नय है ।
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संग्रह नय व व्यवहार नय ये दोनों अर्थ नये. है,, इसलिये वे सत्ताभूत पदार्थ को ही अभेद या भेद रूप विषय करती है । उनमें से भी संग्रह नय एक अभेद व सामान्य पदार्थ को, उसके उत्तर भेदों या विशेषताओ को दृष्टि से ओझल करके, एक रूप से ग्रहण करता है, जबकि व्यवहार नय उसके द्वारा ग्रहण किये गये विषय के अनेक भेदों को अथवा उसकी अनेक विशेषताओं को दर्शाता है |