Book Title: Navpad Prakaranam
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 277
________________ नवपद इओ य सयगाइसमणोवासया पभाए चेव ण्हाया कयबलिकम्मा समागया तत्थेव तित्थयरवंदणत्थं, तित्थयरं वंदिऊण निसण्णा जोग्गभूमीए, एत्थंतरंमि वृत्तिः मू.देव. > पणामपुव्वं निवेसिऊण कमलमउलसममंजलिपुडं भालयले भणियं संखेण भयवं ! कोहवसट्टे जीवे कि बंधई किं चिणाइ ?, आह जिणोआउवज्जाओ वृ. यशो ।। २५४।। सत्त कम्मपयडीओ भो संखा ! ॥१॥ एवं माणवसट्टे पुच्छा मायाऍ तहय लोभे य। सव्वत्थ उत्तरं एयमेव भणियं जिणिदेणं ॥ २॥ ताहे पुट्ठो सामी सयगाईहिं जहा इमो संखो । हीलई अम्हे कल्लं जं न कओ पोसहो तेण ॥ ३॥ सामिणा भणियं-नेयमत्थि, पियधम्मो दढधम्मो जागरिओ तह सुदक्खुजागरियं । एसो ता मा निंदह एयमसब्भूयभणणेणं ॥ ४ ॥ तत्थेव तओ पुच्छा गोयमसामिस्स कइविहा भंते !। जागरिया पन्नत्ता !, तिविहं तं आह तित्थयरो ||५|| बुद्धाबुद्धसुदक्खूभेएणं तत्थ बुद्धजागरिया । जा केवलस्स सयउवउत्तभावस्स होइ ठिई || ६ || बीया मिच्छाद्दिट्टीणबुद्धतत्तत्तओ पत्ताणं । निद्दाविमोक्खणा तइय होइ पुण सम्मदिट्ठीणं ॥ ७॥ तेच्चिय जेण सुदक्खा सुधम्मचितापरा तओ तेऽवि । भीयमणा तं सोउं खामंति पुणो पुणो संखं ||८|| एगट्ठा |पसिणाई पुच्छंतट्ठाइ आइयंति तहा । एयत्थो अट्ठपए उत्तररूवे पगेण्हंति || ९ || पसिणाइ पुच्छिओ जाण साहई जिणवरो महावीरो । वच्चंति तओ गेहं वंदित्तु पुणोवि जिणचंदं ॥ १० ॥ गोयमसामीवि पुणो भणइ जिणं वंदिऊण नाह ! इमो । पव्वइहि किं संखो अगारवासं परिच्चइउं ? ||११|| तित्थयरेण य भणियं-गोयम ! न पव्वइस्सइ केवलमेसो पभूयवरिसाई । पालियसावगधम्मो, संपत्ते कालमासंमि ॥ १२॥ कालं काउं विहिणा, सोहम्मे होइउं सुरत्तेण । तत्तो चुओ समाणो महाविदेहमि सिज्झिहिइ ॥ १३॥ शङ्खकथानकं समाप्तम् ॥ आनन्दकथानकं तु-अत्थि इहेव भरहवासे वासवपुरं पिव विबुहमणसंतोसजणयं जणयाइविणयप्पहाणपउरजणाहिट्ठियं ठियनाणाइगुणसुसाहुजणज्झाणकुंतग्गभिण्णमयणदंसणुप्पन्नसोयभरविहुररइपलावाणुकारिसुव्वमाणभवणवावीविहारिहारिहंससारसाइसउणसंघायकयकोलाहलं लाहलद्धप्पसिद्धिसुद्धववहारववहरंतविदत्तसंपया पयाणसमुवज्जियासमुद्दतपवरकित्तिवित्थरालंकरियपउरवाणियं वाणियगामं नाम नयरं, जं सबालायवंव कणयसिलाविणिम्मियजिणभवणभित्तिपसरतपहाजालेण हरिसद्दलं (सद्धणुं ) व इंदनीलमहानीलमरगयाइमणिघडियजिणिदमहापडिमापयट्टकिरणमालाहि सुररायधणुहसहस्ससंजुयं व रविरहतुरंगमग्गावहारितुंगदेवहरयसिहरसंठियविचित्तरयणनिस्सरंतमऊहसंघाएहिं, अवि य-जत्थ निसासुवि रमणीयरमणिआभरणमणिहयतमासु । विहडंति न दिणबुद्धीए गेहवावीसु चक्काई ||१|| तत्थासि निसियकरालकरवालप्पहारपहयवइरिवारणधडाकुंभयडुच्छालयबहलमुत्ताहलचच्चियसंगामभूमिमंडलो भूमिमंडलप्पसिद्धमाहप्पसत्तुसामंतापराजिओ जियसत्तू नाम नरवई, सयलंते उरप्पहाणा Jain Educaternational For Personal & Private Use Only गुणद्वारे आनंदकथानकं | ।। २५४।। www.brary.org

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