Book Title: Nandanvan Kalpataru 1999 00 SrNo 01
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ - श्रीसुमतिनाथजिनगीतिः॥ सुमतिजिन! तव चरणौ प्रणमामि सुमतिजिन! अघकरणाद् विरमामि तव चरणौ न्यक्कृतजनि-मरणौ मोहमल्लसंहरणौ कृतजगदुद्धरणौ भवरणतोऽहर्निशमहं भजामि..........१ तव चरणौ बहुशतशुभलक्षण-लक्षितमङ्गलकरणौ । देव-दनुज-मनुजैः कृतशरणौ भक्त्या नाथ! यजामि.....२ त्वच्चरणाश्रयणं कुर्वाण: पापाचरणमनुचितम् अपि बहुरुचितं मम बहु कालात् तत्कालं विसृजामि....३ तव चरणौ समवाप्य शरणमिह जातोऽहं जितभवभी: करुणाशील! कुगतिमधुना तव कृपया नैव व्रजामि......४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92