Book Title: Nandanvan Kalpataru 1999 00 SrNo 01
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 30
________________ - -- श्रीपार्श्वनाथजिनगीतिः॥ भवत: पार्श्वजिनो मां पातु याचेऽहं कियदपि वरदानं कृपया मे स ददातु...... भवविस्तरणं जिनविस्मरणं द्वयमपि मम निर्वातु ___ अनिशं पार्श्वस्मृतिजलबलत: कर्ममलो मे यातु.....१ चिरविस्मृतनिजरूपस्मरणा-नुभवं शीघ्रं रातु ___ वीतरागदर्शनविरहो मम नहि नहि भवतु च जातु....२ तव चरणरजःकणभूषणमिह शिरसि सदा मम भातु करुणाशील! तवैवाऽहं जिन! ओमिति मामाख्यातु..३ २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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