Book Title: Nandanvan Kalpataru 1999 00 SrNo 01
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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श्रीश्रेयांसनाथजिनगीतिः ॥
विभो! त्वयि भक्तिर्मम हृदि भवतु भक्तिरेव शक्ति: कलिकाले भक्तिरेव मामवतु.........
भक्तिपदार्थमहं नो वेधि नहि नहि भक्त्या रीतिम्
विनवीम्येतत् तव कृपया तद्-बोधो मय्युद्भवतु....१ भक्तिस्त्वत्पदपङ्कजसेवा त्वत्पूजनमपि भक्तिः आज्ञापालनमपि तव भक्ति: मम मन इदमनुभवतु....२
मुक्तिपदं यावन्नो लप्स्ये श्रीश्रेयांसजिनेश! भक्तिशीलता तावदभङ्गं मयि प्रतिभवं प्रभवतु.....३
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