Book Title: Nandanvan Kalpataru 1999 00 SrNo 01
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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श्रीमुनिसुव्रतजिनगीतिः ॥
सेवे सततं सुव्रतदेवं कोमलदृष्ट्या नाथ! निभालय
मां त्वत्पदकृतसेवम् .
'सेवाधर्मः परमो गहनो
गीयत इति नीतिज्ञैः
तदपि विलग्नं तव सेवायां
सह सह मां दृढहेवम् ...१ यद्यपि मय नहि जनपदसेवा
पात्रत्वांशोऽप्यस्ति
'अविचारितकारी स्याद् बालो'
मन्ये किन्त्वहमेवं 'घूणाक्षरनीत्या' ऽपि कृता जिनसेवाsari फलति
इति मन्वानः कथमिव मुञ्च करुणाशीलं देवम्?. .३
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