Book Title: Nandanvan Kalpataru 1999 00 SrNo 01
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 20
________________ श्रीविमलनाथजिनगीतिः॥ जय जय जय जय विमलजिनेश्वर! तव गुणगानरसाकुलचेता: सञ्जातोऽतितमामविनश्वर! विमलीकुरु मम हृत्कमलं हे नित्योदित! गतताप! दिनेश्वर!...१ बहुकालं सोढस्तव विरहो नाऽहमथोऽधिसहे परमेश्वर! मोहध्वान्ताक्रान्तस्वान्त-स्तव विरहे वर्तेऽहं भास्वर!........२ क्षीरोदस्त्वं क्षारोदोऽहं कुशलस्त्वमहमनङ्कुशप्रष्ठः स्थावरतुल्योऽहं त्वं स्थिरता-स्वामी हे जिन! नित्यविकस्वर!..३ त्वं सगुण: शिवरमणीसक्त: तदसक्तोऽहं निर्गुणपुरुषः मम तव भेदमिमं बहुलघुकं लघु लघु निर्मूलय जगदीश्वर!....४ तव प्रेष्योऽहं प्रेषय मामथ निजगेहे जिन! प्रेषकशेखर! करुणाशील! विगतभवलील! त्वमसि विभो! गतपील! जिनेश्वर..५ १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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