Book Title: Nandanvan Kalpataru 1999 00 SrNo 01
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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श्रीसुपार्श्वनाथजिनगीतिः ॥ रे मम मनसि मुदा त्वं वसतु देव! सुपार्श्व! सदा तव ध्यानं मम हृदये प्रविलसतु.... मम चित्तं बहुदोषकलुषितं पर्युषितं ननु कमलं त्वदर्शनमधुरामृतसेकात् शुचि भूत्वा प्रविकसतु......१ असमप्रशमरसखचितां निचितां गुणपरमाणुसमूहै: तव मुखमुद्रां वीक्ष्योन्मुद्रां नयनयुगं मम हसतु........२ भीमभवारण्येऽशरणोऽहं लुट्यति मां मोहारि: अधुना स्वीकुर्वे तव शरणं येनाऽसौ सन्त्रसतु.........३ अभयदानशीलोऽसि त्वमिति श्रुत्वां त्वां प्रतिपन्न: दुर्गतिभयभीतेऽथ विभो! तव करुणा मयि उल्लसतु....४
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