Book Title: Nandanvan Kalpataru 1999 00 SrNo 01
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ Jain Education International श्रीसम्भवनाथजिनगीतिः ॥ तारय तारय रे सम्भवजिन! मां तारय मारय मारय रे मोहरिपुं मम मारय.... कारय निरुपमसमतानन्दं निजगुणगणनिःष्यन्दं, वारय विषमममत्वस्पन्दं संवर्धितभवकन्दम्... *****... विस्तारय सुविवेकाभोगं योगविलसदुपयोगं, दारय दुर्मतिदारुणरोगं कृतसतताशुभयोगम्... ३ .... २ विनिवारय मयि कर्मकुदृष्टिं रचय शीलसुखसृष्टिं, धारय मम विज्ञप्तिं कुरु कुरु मयि करुणारसवृष्टिम्... .३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92