Book Title: Nal Damayanti Author(s): Purnanandvijay Publisher: Purnanandvijay View full book textPage 5
________________ पुरुष यदि कम पढ़ेगा तो भी समाज, देश तथा कुटुंब को कुछ भी हानि होनेवाली नहीं है, परन्तु कन्याओं को सत्य, सदाचार तथा ग्रार्हस्थ्य जीवन की पवित्रता का शिक्षण नहीं मिलने पाया तो देशसमाज तथा कुटुंब की जो हानी होगी, उसकी भरपाई शताब्दीयों में भी होनेवाली नहीं है / प्रत्येक इन्सान अपना-अपना धर्म समझे इसी में ही मानव जीवन की यात्रा की फलश्रुति है / वह जिस प्रकार से भी प्राप्त हो उसी का नाम है, सम्यक्ज्ञान, विज्ञान, एज्युकेशन तथा सम्यक् चारित्र / नारी जाति के बहुमान तथा सत्कार का चरित्रार्थ यही है कि, अपनी विवाहित पत्नी को छोड़कर शेष, भाभी, साली, सहपाठिनी, विद्यार्थिनी, पडोसन, नौकरानी आदि नारीओं के प्रति मातृत्वदृष्टि, पवित्र भाव तथा उन्हें गन्दे इन्सानों से सुरक्षित रखता है। वह चाहे किसी भी जाति की हो, यदि पवित्र रहेगी अथवा रखी जायेगी, तो उसकी संतान भी पवित्र तथा चारित्र सम्पन्न बनेगी जो देश, समाज तथा कुटुंब की रक्षा करने में समर्थ बन पायेगी। "चिरंजीयात् चिरंजीयात् देशोऽयं धर्मरक्षणात्" धर्म की रक्षा करने में ही देश आवाद तथा आजाद है / धर्म का अर्थ संप्रदायवाद या कोरी तात्विक चर्चा नहीं है, परन्तु जीवन के रोम-रोम में से हिंसक भाव, मृषावाद, चौर्य, दुराचार, कुकर्म, गंदी चेष्टा का त्याग तथा परिग्रह को मर्यादित करना है / क्योंकि पाप का बाप (Father) ही लोभ परिग्रह है। "धारणाद्धर्म उच्चते" पापी भावनाओं से तथा पापमार्ग से आत्मा बुद्धि मन तथा इन्द्रियों को बचावे उसी का नाम है धर्म व धार्मिकता। "स्वधर्मे निधनं श्रेय" का तात्पर्य भी यही है कि, 'स्व' अर्थात आत्मा उसका धर्म, अहिंसा, संयम तथा सात्विक तपश्चर्या के अतिरिक्त दूसरा कुछ भी नहीं है ।अर्थात् इन तीनों तत्वों को जीवन के अणुअणु में उतारना इसी का नाम है स्वधर्म / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TrustPage Navigation
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