Book Title: Nabhakraj Charitra
Author(s): Merutungacharya, Gunsundarvijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 7
________________ में, जिनालय से संबंधित सारी व्यवस्था, पूजा की सामग्री-अंगरचना आदि में हो सकता है । देवद्रव्य का यह उपयोग है । तात्पर्य यह है कि देवद्रव्य पाठशाला में खर्च करना, साधर्मिक भक्ति में खर्च करना या स्कूल-कालेज-अस्पताल के लिए खर्च करना सर्वथा अनुचित है । जिनाज्ञा द्वारा निषिद्ध है ।" प्रस्तुत पुस्तक 'नाभाकराज चरित्र' में देवद्रव्य के शास्त्रकथित सदुपयोग से लाभ, पुण्य, सद्गति की प्राप्ति तथा दुरुपयोग करने से होनेवाले नुकसान, पुण्यनाश, दुर्गति की प्राप्ति आदि बातें अंचलगच्छेश आचार्य मेरुतुंग सूरिवर महाराज ने सुंदर रूप से आलेखित की है । वे पंद्रहवीं शताब्दि में अर्थात् आज से. प्रायः छे सौ वर्ष पूर्व हुए हैं । सकल श्री संघ-हितचिंतक, न्यायविशारद, पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज साहब के शिष्यरत्न तथा मेरे गुरु-लघु बंधु पूज्य पंन्यास श्री गुणसुंदर विजयजी गणिवर म.सा. के हाथों में संस्कृत भाषा में रचित यह नाभाकराज चरित्र आया । देवद्रव्य विषयक यह नाभाकराज चरित्र पढ़कर वे आनंद से झूम उठे । उन्होंने उसका साधंत भावानुवाद गुजराती भाषा में किया जो श्री संघ के समक्ष प्रस्तुत किया । इसका यह हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है । पूज्य पंन्यास श्री गुणसुंदर विजयजी महाराज साहब देवद्रव्य के दुरुपयोग के विषय में निरंतर चिंतित रहते हैं । इस कारण से वे इस विषय में बारबार लिखते हैं, एवं व्याख्यान आदि में बोलते रहते हैं । कभी शास्त्रोक्त एवं मार्गानुसारी देवद्रव्य विषयक कथन भी किसी प्रबंधकर्ता, ट्रस्टी आदि को अच्छा न लगे, तो भी इस विषय में वे अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते रहते हैं । किंतु इसमें उनका शुद्ध आशय यही होता है कि भव्य जीव देवद्रव्य के भक्षण-नुकसान के दोष से बचें और देवद्रव्य की रक्षा के द्वारा परलोक में सद्गति प्राप्त करें । एक ओर यह अत्यंत आनंद की बात है कि जैन शासन में और विशेष कर के श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघो में देवद्रव्य के उपयोग के विषय में पर्याप्त बोध एवं जानकारी है और उसी वजह से श्री संघो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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