Book Title: Nabhakraj Charitra
Author(s): Merutungacharya, Gunsundarvijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 58
________________ ५७ (५) समुद्र - सिंह - नागगौष्टिक का भवभ्रमण ( २ ) सिंह | देवद्रव्य के भक्षण के | पाप से दो बार सातों | सात नारकी में भटका (१) समुद्रपाल राजा पहला भव समुद्रपाल राजा समुद्रपाल राजर्षि दूसरा भव अनुत्तर विमानवासी देव तिसरा भव मनुष्य बनकर संयमी बनकर मोक्ष में देवद्रव्य के सदुपयोग आदि के द्वारा तीसरे भव में मोक्ष Jain Education International बारह बार गधे का अवतार तीसरा भव | मरने के बाद भानु नामक ग्रामीण मनुष्य । | प्रथम हिंसक और बाद में हिंसा का नियम ग्रहण (४) करनेवाला मुनि को - (३) नागगौष्टिक (१) नागगौष्टिक (२) मरकर व्यंतर (३) देवद्रव्य भक्षक होने के कारण सोम नामक कौटुंबिक पुत्र । पाँच वर्ष की वय में माता की मृत्यु । देव के चंदन से शरीर पर विलेपन | मुनि की | दान-नाभाक राजा (५) | बना। मंदिर का निर्माणअच्युत देव बनने के बाद (६) | मनुष्य बनकर मोक्ष में जायेगा । [ उन्नीस कोटाकोटि सागरोपम संसार भ्रमण सिंह का और नाग गौष्टिक का दोनों का ।] हत्या | सातवीं नारकी फिर भवभ्रमण For Private & Personal Use Only खेत त- मज़दूर-मुनि को प्रतिलाभ मृत्यु के बाद चंद्रादित्य राजा, जिनमंदिर का निर्माण कर पापमुक्त बनकर (७) सौधर्म देवलोक में चंद्रादित्य नाम का देव । बाद में मनुष्य बनकर मोक्ष में जायेगा । www.jainelibrary.org

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