________________
५५
है वह भी अपने पुण्य से शत्रुंजय गिरिराज प्राप्त न करनेवाले लोगों में सेवा के योग्य होता है और वह कभी भी जिनेश्वर को छोड़कर अन्य किसीकी उपासना करता नहीं है यह नि:शंक बात है, क्योंकि शुभ बुद्धिवाली आत्मा चिंतामणि को प्राप्त करने के पश्चात् कंकर को क्यों ग्रहण करने जायेगा ? (सर्ग - १५)
पू. आ. श्री धनेश्वरसूरिजी महाराज लिखित श्री शत्रुंजय माहात्म्य ग्रंथ में से उद्धृत
(३) देवद्रव्य के विषय में कुछ विशेष जानने योग्य
देवद्रव्य से जो वृद्धि/समृद्धि होती है, गुरुद्रव्य से जो धन प्राप्त किया जाता है वह धन कुल का नाश करता है । वह व्यक्ति मरकर नरक में जाता है । (उपदेश सार) यदि देवद्रव्य की वृद्धि करनेवाला जीव तीर्थंकरपद को प्राप्त करता है तो उसका भक्षण करनेवाला जीव अनंत संसारी बनता है । ( उपदेश सार)
श्री महावीरप्रभु समझाते हैं: है गौतम ! देवद्रव्य का भक्षण करने से तथा परस्त्री के साथ दुराचार करने से जीव सात बार सातवीं नारकी में जाता है । ( उपदेश सार)
जो जीव देव संबंधी ली हुई वस्तु का नाश करता है, देवद्रव्य देना स्वीकार करने के बाद देता नहीं है, देवद्रव्य के नाश के समय उपेक्षा करता है वह भी संसार में भटकता है । (उपदेश सार)
देवद्रव्य की रक्षा करनेवाले जीव का संसार अल्प होता है, तथा देवद्रव्य की वृद्धि करनेवाला जीव तीर्थंकरपद को प्राप्त करता है । ( सूक्त मुक्तावली )
देवद्रव्य का भक्षण - गुरुद्रव्य का भक्षणवाला - परदारा सेवनवाला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org