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'हे जीवों ! अगर तुम तत्त्व जानना चाहते हो, अगर धर्माचरण करने की तुम्हारी इच्छा है, तो अन्य सर्व कार्य को छोड़कर श्री सिद्धगिरिजी महातीर्थ की निश्रा का स्वीकार करो ! श्री शत्रुंजय तीर्थाधिराज पर, श्री जिनेश्वर भगवंत का ध्यान करने के समान अन्य कोई श्रेष्ठ कार्य इस जगत में नहीं है । इस तीर्थ के समान परम तीर्थ अन्य कोई नहीं है तथा इस परम पवित्र तीर्थक्षेत्र पर श्री जिनेश्वरदेव के ध्यान के समान अन्य कोई धर्माचरण नहीं है ।'
अन्य तीर्थों में जाकर उत्तम ध्यान, शील, दान तथा पूजन के द्वारा जो फलप्राप्ति होती है, उससे अधिक फल श्री शत्रुंजय की कथा का श्रवण करने से प्राप्त होता है, अतः हे पुण्यवान आत्माओं ! तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजय गिरिराज के माहात्म्य को तुम सुनो, जिससे आपत्तिरहित संपत्ति की प्राप्ति होती है।
पू.आ. श्री धनेश्वरसूरीश्वरजी महाराज
शत्रुंजय तीर्थ की महिमा
भगवान श्री महावीर स्वामी अपनी देशना में फरमान करते हैं : जिसने श्री शत्रुंजय की यात्रा नहीं की है, वहाँ विराजमान श्री ऋषभदेव की जिसने पूजा नहीं की है वह अपना जीवन व्यर्थ हार गया है । अन्य तीर्थों में अनेक बार यात्रा करने से जो पुण्य मनुष्य को प्राप्त होता है वही उतना ही पुण्य इस गिरिराज की यात्रा केवल एक बार करने से प्राप्त होता है ।
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यह गिरिराज तो भगवान श्री आदीश्वर प्रभु से अलंकृत है । अतः जिस प्रकार तप आत्मा के दुष्ट कर्मों का भेदन करता है, उस प्रकार यह तीर्थ निबिड़ पाप का भी भेदन कर डालता है । यदि तीव्र तप किया हो, उत्तम प्रकार का दान दिया हो और अगर जिनेश्वर प्रभु प्रसन्न हुए हों तो ही इस गिरिराज की क्षणभर भी
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