Book Title: Nabhakraj Charitra
Author(s): Merutungacharya, Gunsundarvijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 52
________________ ५१ ने विधिपूर्वक अनशन किया, उसे सुंदर रूप से पूर्ण किया और वह पहुँच गया बारहवें अच्युत देवलोक में ऋद्धिमंत देव के रूप में । वहाँ से च्यवित होकर मनुष्य भव प्राप्त करके वह मोक्ष प्राप्त करेगा । चंद्रादित्यदेव भी मनुष्यजन्म प्राप्त करके सुंदर धर्मआराधना करके शाश्वत सुख का स्वामी बनेगा । देवद्रव्य के रक्षण से राजा समुद्रपाल तीन भव में मोक्ष में गया तो सिंह ने और नाग कौटुंबिक ने देवद्रव्य के भक्षण से उन्नीस कोटाकोटि सागरोपम के दीर्घकाल तक संसार में भयंकर दुःख सहे । श्री समुद्रपाल राजा, श्री नाभाक राजा, तथा चंद्रादित्य राजा का यह कथानक सुनकर बुद्धिमान जनों को देवद्रव्य के भक्षण तथा उपेक्षण आदि से सदा-सर्वदा दूर रहना चाहिए । इसका खूब सुंदर संरक्षण-सदुपयोग-वहिवट करना चाहिए । यह कथा श्रीमद् अंचलगच्छेश आचार्य श्री मेरुतुंगसूरीश्वरजी महाराज ने वि.सं. १४६४ में लिखी है । इस प्रकार देवद्रव्य के अधिकार में श्री नाभाकराज कथा पूर्ण हुई । श्री संघ का सदैव शुभ हो । कल्याण हो । मंगल हो । परिशिष्ट (१) देव-गुरु की कृपा :- भक्तहृदय शुभप्राप्तियों के लिए देवगुरु की कृपा-प्रभाव को ही प्राधान्य देता है । हरेक प्रकार के कर्म का क्षयोपशम देवगुरु के प्रभाव से होता है - ऐसा भक्तहृदय श्रद्धापूर्वक स्वीकार करता है । देखिए 'जय वीयराय' सूत्र में 'होउ ममं तुहप्पभावओ भयवं' ये शब्द । मुनि को शातापृच्छा में उनका उत्तर - 'देवगुरु पसाय', श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान के स्तवन में : 'मुख्य हेतु तुं मोक्षनो' इत्यादि वचन भी प्रभु के-गुरु के अचिंत्य प्रभाव को महत्त्व देता है । भक्त के हृदय में देव तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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