Book Title: Nabhakraj Charitra
Author(s): Merutungacharya, Gunsundarvijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 51
________________ से जीत लिए । सोलह हज़ार राजाओं पर उसकी आज्ञा प्रवर्तित की । इस प्रकार उसने राज्य का एवं स्व धर्म का पालन किया । राज्य का फल प्राप्त किया । वह त्रिकाल जिनपूजन करता था तथा उभयकाल छः आवश्यक करता था । वह राजा ने प्रत्येक गाँव में ऊँचे तथा तोरणवाले जिनमंदिरों का निर्माण करवाया । हज़ारों की संख्या में धर्मशालाओं का निर्माण करवाया । हिंसा, असत्य, परद्रोह, मिथ्या-दोषारोपण, चुगली, झगड़ा, ईर्ष्या, परनिंदा आदि बुरे भावों को अपने राज्य में से निःशेष करवाये । विशेषतः जुआ, शिकार, बड़ी चोरी, मांसभक्षण, मदिरापान, परस्त्रीसेवन, वेश्यासेवन आदि सात व्यसन निर्मूल करवाये । जो कोई व्यक्ति मिथ्यात्व, पाप, अन्याय मन से भी करता तो उसे वह चंद्रादित्य देव स्वयं शिक्षा करता था । इस कारण से उस देश के निवासी केवल पुण्यबुद्धि-धर्मबुद्धि से राजा के मार्ग का अनुसरण करते थे । कहा गया है : यथा राजा तथा प्रजा । इस प्रकार पृथ्वी पर जैसे जैसे पुण्य की वृद्धि होती गई वैसे वैसे ठीक समय पर वर्षा, असीम धान्य की प्राप्ति, अनेक पुष्प देनेवाले तथा फलों के वृक्ष-अत्यधिक दूध देनेवाली गायें, खान में से अनेकानेक रत्नों की प्राप्ति, महालाभप्रद व्यापार, सुखपूर्वक संचारवाला विदेशगमन आदि सब होता गया । प्रजा रोगरहित, भयरहित, महान सुखवाली, दीर्घायुषी, पुत्र-पौत्रादि संतानों की वृद्धिवाली बनी । हाँ । जहाँ धर्म की सर्वोपरिता हो वहाँ यह सब शुभ चीजें अत्यंत सुलभ हो उसमें क्या आश्चर्य ? __ श्री नाभाक नराधीश के राज्य में लोगों के धर्म तथा सुख को देखकर धर्मरहित देव लज्जित होकर मानों वहाँ से देवलोग में पलायन हो गये थे ऐसा लगता था । इस प्रकार राजा ने दीर्घकाल तक स्थिर विशाल राज्य किया । अंत समय पर उस बुद्धिमान राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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