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श्री वर्तमान शासनाधिपति श्री महावीर स्वामिने नमः । श्रीमद् विजय प्रेम-भुवनभानु - जयघोष - जगच्चंद्रसूरिवरेभ्यो नमः ।
श्रीमद् अंचल - गच्छेश मेरुतुंगसूरिवर विरचित श्री नाभाकराज चरित्र ग्रंथ रचयिता का संक्षिप्त परिचय
जन्म वि.सं. १४०३
वि.सं. १४२६
सुरिपद ग्रंथरचना वि.सं. १४६४
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मुनि दीक्षा - वि.सं. १४१० स्वर्गवास वि.सं. १४७३
आपका जन्म मारवाड़ ( राजस्थान) में नाणीगाँव में हुआ था । माता श्रीमती नालदेवी, पिताजी प्राग्वाट वंशीय श्रेष्ठी वयरसिंह वोरा । सुस्वप्न - सूचित - सात वर्ष की आयु में दीक्षा बाद व्याकरण - साहित्य-छंदअलंकार-अष्टांगयोग- मंत्र - आम्नाय - आदि में निपुणता ।
- यवनराज को अहिंसाधर्म का प्रतिबोध किया ।
- लोलाडा नगर में राठोड वंशीय फणगर मेघराज सहित १०० मनुष्यों को प्रतिबोध किया था ।
- सूरिजी को लोलाड़ा नगर में सर्पदंश हुआ था । श्री जीरावल्ली पार्श्वनाथ भगवंत के महामंत्र के द्वारा उन्होंने उस विष का प्रभाव दूर किया था । विष अमृतरूप में परिणत हुआ । उसी नगर के मुख्य द्वार के निकट के तेरह हाथ लंबे अजगर के द्वारा हो रही तकलीफ़ को सूरिजी ने दूर की थी ।
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- पाटण के निकट यवनराज को प्रतिबोधित कर हिंसा का त्याग करने को समझाया था ।
- पू. सूरिजी के जीवन के ऐसे अनेक चमत्कारपूर्ण प्रभावों का वर्णन पू. मुनिश्री कलाप्रभसागरजी म. ने किया है । ( इति लेखक परिचय)
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