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प्रकार क्रमशः पाँचवी, चौथी, तीसरी, दूसरी और पहली नारकी में एक एक तीर्यंच के दूसरे भव के अंतर से उत्पन्न हुआ । इसके बाद भी दुःख के महासागर के समान घोर संसार में भटका
प्रश्न :- इतना भयंकर दुःख उसे किस कार्य के फल स्वरूप भोगना पडा ?
उत्तर :- यह सब देवद्रव्य के विनाश का फल समझिये ।
शिव के एक भक्त सेठ ने देवद्रव्य अन्यायपूर्वक अल्प प्रमाण में ही भोगा था फिर भी उसे सात बार कुत्ते का जन्म लेना पड़ा था । नहीं ! नहीं ! देवद्रव्य का उपभोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी रूप में कभी भी किया जाना ही नहीं चाहिए । अरे ! विष खाकर कभी जीवित रहा जा सकता है ? सज्जन के कर्ज में से मुक्त होने के लिए क्या पठाण से कभी कर्ज लेना चाहिए ? नहीं नहीं ।
नाभाक राजा :- प्रभु यह सेठ कौन था ? वह किस प्रकार श्वान बना ?
देवद्रव्य का भक्षण सेठ को श्वान बनाता है
गुरुमहाराज बताते हैं :- (अवांतर कथा )
सुनिये । भरतक्षेत्र में तथा ऐरवत क्षेत्र में प्रत्येक उत्सर्पिणीअवसर्पिणी काल में ६३ शलाका पुरुष होते हैं है :- २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव । इन शलाका पुरुषों में से एक श्री में राज्य करते थे । गरीब प्रजा भी सुंदर रीति से न्याय प्राप्त कर सके उस हेतु से उन दयावान राजाने एक न्यायघंट की व्यवस्था की थी। एक दिन एक श्वान किसी राजमार्ग पर बैठा था तब किसी
यह इस प्रकार बलदेव तथा ९ राम पूर्व काल
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