Book Title: Nabhakraj Charitra
Author(s): Merutungacharya, Gunsundarvijay
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 15
________________ १४ श्री जिनशासनाय नमो नमः श्रीमद् अंचल-गच्छेश मेरुतुंगसूरिवर विरचित श्री नाभाकराज चरित्र अब पू. सूरिदेव २९५ पद्य-श्लोक प्रमाण चरित्र का आरंभ करते हैं । जिनदेव की स्तुति के द्वारा मांगलिक करते हुए कहते जिन प्रभु के प्रभाव से कदम कदम पर सौभाग्य, आरोग्य, सद्भाग्य, उत्तम-महिमा, सन्मति, ख्याति, कांति, प्रतिष्ठा, तेज, शौर्य, श्रेष्ठ संपत्ति, विनय, न्याय, यश की परंपरा, प्रीति आदि सर्व शुभ भाव स्वाभाविक रीति से उदय में आते हैं वे श्री जीरावल्ली पार्श्वनाथ भगवान आपके लिए आनंदरूप बनें ! [देखिए परिशिष्ट (१)] वर्तमान शासनाधिपति श्री महावीरस्वामीजी को सम्यग् रूप से प्रणाम करते हुए ग्रंथकार-कविराज श्री नाभाकराजा का चरित्र (कथा) आरंभ करते हैं । यहाँ मुख्यतः देवद्रव्य की वृद्धि तथा संरक्षण से आत्मिक लाभ तथा उसकी उपेक्षा-भक्षण के परिणाम स्वरूप होनेवाले अपायों की बातें बताई गई हैं । ____ वस्तु के स्वरूप का यथार्थ रीति से निश्चय करने में दक्ष अर्थात् विवेकी जनों को नाभाक नरेन्द्र की कथा का श्रवण अत्यंत लाभप्रद होता है । योग्य रीति से प्रयुक्त की गई जांगुली विद्या अगर सर्प के विष को दूर करती है तो इस कथा का श्रवण करनेवाले का लोभरूप विष भी दूर हो जाता है । इस आख्यान का कर्णामृत प्रेमपूर्वक पान करनेवाला भव्यजीव सदा-सर्वदा संतोष गुण से संतुष्टित बनकर द्रव्य एवं भावस्वरूप सर्व संपत्तियों का भागी बनता है । पूर्व के मुनियों द्वारा वर्णित, पवित्र, पुण्यार्थियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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